Book Title: Hemchandracharya Diwakar Chitrakatha 040
Author(s): Nityanandsuri, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 9
________________ कलिकाल सर्वज्ञ : हेमच देव खंभात के बाहर 'उज्जयन्तावतार' नामक एक अति प्राचीन जिनालय था। दोनों मुनियों ने इसी जिनालय के समीप धर्मस्थान में विश्राम किया। रात्रि के शान्त वातावरण में मुनि सोमचन्द्र के मन में एक कल्पना उठीआज रात मैं इसी मुनि सोमचन्द्र शुद्ध वस्त्र पहनकर जिनालय में आये। जिनालय में देवी और भूमि पर आसन बिछाकर ध्यानस्थ हो गये। सरस्वती का ध्यान) चालू कर दूँ। Coro मध्य रात्रि के समय देवी सरस्वती प्रकट हुई वत्स ! मैं तेरी भक्ति से प्रसन्न हूँ। तुझे कश्मीर जाने की जरूरत नहीं है। मैं 'सिद्ध सारस्वत होने का वरदान देती हूँ। सर्व विद्या सिद्धो भव' मुनि सोमचन्द्र के चेहरे पर तेज चमक उठा। हृदय में हर्ष उछल रहा था। अपने साथी मुनि के साथ वापस गुरुदेव के पास लौट आये।। वत्स ! अपनी गुरुदेव! आपकी कृपा से ( विशिष्ट प्रतिभा-मेधा एक ही रात्रि की आराधना से जिनशासन की में सरस्वती देवी की कृपा प्रभावना करो। हो गई है मुझ पर। और देवी अदृश्य हो गई। मुनि सोमचन्द्र साहित्य सर्जना में जुट गये। For Private 7 Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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