Book Title: Hemchandracharya Diwakar Chitrakatha 040
Author(s): Nityanandsuri, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ कलिकाल सर्वज्ञ : हेमचन्द्राचार्य धनद सेठ ने दोनों मुनियों की बात सुनी तो हाथ मोड़कर पूछा- महाराज, आप सोने की मोहरों की क्या बात कर रहे थे? छोटे महाराज पूछ रहे हैं, तुम्हारे घर के कोने में सोने-चाँदी की मोहरों का ढेर लगा है और तुम सब आटे की राब पी रहे, हो? यह क्या बात है? HTT ATIOHTOURNOOO ANAV सेठ ने मुनि सोमचन्द्र के पैर पकड़ लिएगुरुदेव ! मुझ भाग्यहीन से ऐसा मजाक आप तो न करें। कहाँ हैं मोहरें? वह तो NY कोयलों का ढेर है। WLLIDAVAVALAS फिर सेठ ने बतायाकिसी जमाने में मैंने इन घड़ों को सोने-चाँदी की मोहरें भरकर ही भूमि में गाड़ा था परन्तु तकदीर के फेर ने उन सबको कोयला बना दिया। क्या आप इन कोयलों को ही सोना चाँदी की मोहरें बता रहे हैं? मुनि वीरचन्द्र बोले- सेठ, तुम्हारा दुर्भाग्य आज विदा हो गया है। मुनि सोमचन्द्र की दृष्टि पड़ते ही वह कोयला फिर सोना हो गया है। Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38