Book Title: Hemchandracharya Diwakar Chitrakatha 040
Author(s): Nityanandsuri, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 12
________________ कलिकाल सर्वज्ञ : हेमचन्द्राचार्य सेठ अन्दर देखने आया। घड़ों में सोने-चाँदी सेठ दोनों मुनियों के साथ उपाश्रय में आया। की मोहरें भरी थीं। Leod OOON सेठ ने बाहर आकर मुनियों के पाँव पकड़ लिए। अब आज्ञा करें, मैं इस स्वर्ण का कहाँ उपयोग करूँ? Jain Education International गुरुदेव ! आपके शिष्य की अमृत दृष्टि के प्रभाव से कोयला इसके पश्चात् आचार्य देवचन्द्र सूरि विहार करते हुए पाटन पधारे। एक दिन एक वृद्ध पुरुष ने आकर आचार्यश्री को वन्दना की। महाराज, गौड देश में आजकल बड़े-बड़े मंत्रवादी, विद्यासिद्ध, महापुरुष हैं। आप भी वहाँ पधारिये। इससे प्रजा का कल्याण होगा। बनी मेरी मोहरें फिर से सोना बन गईं। धर्म के प्रभाव से पुण्य बढ़ता है, पुण्य प्रभाव से धन मिलता है। इसलिए धर्म-प्रचार में धन का सदुपयोग करो। धनद सेठ ने उस स्वर्ण के एक भाग से भगवान महावीर स्वामी का जिन प्रासाद बनवाया। उसके चले जाने के बाद मुनि सोमचन्द्र ने आचार्यश्री से निवेदन किया 10 For Private & Personal Use Only सेठ ! साधना का ऐसा ही प्रभाव होता है। "गुरुदेव, आप आज्ञा दें तो मैं गौड देश में जाना चाहता हूँ। www.jainelibrary.org

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