Book Title: Gyanpushpa
Author(s): Taran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publisher: Taran Taran Gyan Samsthan Chindwada

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Page 16
________________ पाठ-१ शलाका पुरुष माँ - बेटा चिंतन ! जल्दी तैयार हो जाओ, चैत्यालय जी चलना है, पंडित जी आये हैं, आज प्रथमानुयोग पर प्रवचन करेंगे। चिंतन - माँ ! प्रथमानयोग किसे कहते हैं? माँ - जिन शास्त्रों में वेसठ शलाका पुरुषों की जीवन गाथा या उनके गुणों का वर्णन होता है उसे प्रथमानुयोग कहते हैं। चिंतन - शलाका पुरुष किसे कहते हैं? माँ-तीर्थंकर चक्रवर्ती आदि प्रसिद्ध पुरुषों को शलाका पुरुष कहते हैं। २४ तीर्थंकर, १२ चक्रवर्ती, ९ नारायण, ९ प्रतिनारायण, ९ बलभद्र (बलदेव) प्रत्येक अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी में ६३ ही होते हैं। अथवा तीर्थंकर के माता - पिता, ९ नारद, ११ रुद्र, २४ कामदेव, १४ कुलकर यह सब १६९ महापुरुष होते हैं इनको भी शलाका पुरुष कहते हैं। चिंतन - ये शलाका पुरुष तो सभी मोक्ष जाते होंगे? माँ- तीर्थंकर, उनके माता-पिता, चक्रवर्ती, बलदेव, नारायण, रुद्र, नारद, कामदेव और कुलकर पुरुष यह सभी भव्य होते हैं और नियम से एक या दो भव में मोक्ष प्राप्त करते हैं। तीर्थंकर तो उसी भव से मोक्ष जाते हैं लेकिन अन्य पुरुषों के लिये उसी भव से मोक्ष जाने का नियम नहीं है। नारद, रुद्र, नारायण और प्रतिनारायण उसी भव से मोक्ष नहीं जाते हैं। चक्रवर्ती - मोक्ष, स्वर्ग और नरक भी जाते हैं। चक्रवर्ती का चक्रवर्ती पद पर रहते हुए मरण हो जावे तो वह नियम से सातवें नरक ही जाता है। बलदेव- मोक्ष और स्वर्ग ही जाते हैं। चिंतन - शलाका पुरुष जैसी उत्कृष्ट पदवी पाने के बाद भी नरक क्यों चले जाते हैं? माँ ! किसी शलाका पुरुष का जीवन चरित्र सुनाओ। माँ - अच्छा, आज मैं तुम्हें सुभौम चक्रवर्ती की कहानी सुनाती हूँ। चक्रवर्ती का सातिशय पुण्य का उदय रहता है। वह छह खण्ड का राजा होता है और बत्तीस हजार मुकुटबद्ध राजाओं का अधिपति होता है। चक्रवर्ती की ९६ हजार रानियाँ होती हैं। पुण्योदय से उन्हें नव निधियाँ और चौदह रत्न प्राप्त होते हैं। एक दिन छह खण्ड के अधिपति सुभौम चक्रवर्ती रत्न जड़ित सिंहासन पर विराजमान थे। पास में मंत्रीगण तथा अन्य सभासद बैठे हुए थे। उसी समय एक पूर्व भव का बैरी देव बदला लेने की इच्छा से व्यापारी का वेष धारण करके आया और चक्रवर्ती को एक फल भेंट किया। राजा फल खाकर बहुत प्रसन्न हुआ और उससे पूछा कि आप ऐसा सुन्दर स्वादिष्ट फल कहाँ से लाये? व्यापारी ने कहा- राजन् ! आप मेरे देश में चलिये, मैं वहाँ आपको ऐसे अनेकों फल खिलाऊँगा। चिंतन-माँ! रसना इन्द्रिय की लोलुपता के कारण क्या चक्रवर्ती व्यापारी के साथ जाने को तैयार हो गया? माँ- हाँ, उसने विचार तक नहीं किया कि भला चक्रवर्ती के समान भोगोपभोग की सामग्री किसे मिल सकती है ! वह तीव्र आसक्ति के कारण उन फलों का सेवन करने में ही सुख मानने लगा उसने विचार किया

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