Book Title: Gurupad Pooja Author(s): Ajitsagarsuri Publisher: Shamaldas Tuljaram Prantij View full book textPage 3
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૧ पण सफल थतो नथी. अहो ! गुरुप्रभाव केवो अलौकिक छे, जेनो अवधि पण आंकी शकातो नथी. शरणं भव्व जिआणं, संसाराडविमहाकलम्मि | मुत्तुणं गुरु अन्नो, णत्थि होही णविय हुत्था ||२|| आ जगत्नी अंदर मृषावादी असद्मार्गना उपदेशको तो घणाए दृष्टिगोचर थाय छे. परंतु मितभाषी सन्मार्गना यथार्थ उपदेष्टा गुरु तो क्वचितज होय छे, तेवा सदगुरु विना अन्य कोण भव्य जीवोने संसाररूप अति गहन अटवीमां शरण छे नही. भविष्यमां पण गुरु शिवाय अन्य त्राता नथी, तेमज प्राचीन कालमा पण गुरु एज उद्धारक थएला छे, माटे त्रणे कालमां गुरु शिवाय कोइनो उद्धार थतो नथी. मुरुभक्तिथीज आ संसारसागर तरवानो छे अने गुरु शिवाय अज्ञान टलवानुं नथी. जह दीवो अप्पानं, परंच दीवइ दित्ति गुणजोगा । तह रयणत्तयजोगा, गुरूवि मोहंधयारहरो ॥ १ ॥ हे भव्यात्माओ ! जेम दीपकमां प्रकाशक गुण रहेलो छे, जेथी ते पोताने अने परपदार्थने प्रकाशित करे छे. तेबीज रीते ज्ञान, दर्शन अने चारित्ररूप रत्नत्रयना आराधक होवाथी गुरुपण मोहरूपी अंधकारने दूर करी पोताने अने परने दीपावे छे. For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 ... 102