Book Title: Guru Shishya
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 14
________________ गुरु-शिष्य सच्चा जानकार ढूँढ निकालो, तो वह स्टेशन दिखाएगा, नहीं तो अंदाज से कुछ भी बताकर भटकाते ही रहेंगे। एक अंधा दूसरे अंधे को ले जाए, तो वह कहाँ ले जाएगा? सच्चा जानकार तो तुरंत बता देगा। वह उधारवाला नहीं होता, वह तो नकद ही होता है सब। अर्थात् जानकार नहीं मिला, इसलिए जानकार ढूँढो। प्रश्नकर्ता : परंतु जानकार, वह ऊपरी (बॉस, वरिष्ठ मालिक) होता है या नहीं? दादाश्री : जानकार ऊपरी होता है, परंतु कब तक? हमें मूल स्थान पर ले जाए तब तक। इसलिए सिर पर ऊपरी चाहिए ही, दिखानेवाला चाहिए, मार्गदर्शक चाहिए, गाइड चाहिए ही हमेशा। जहाँ देखो वहाँ गाइड चाहिए। गाइड के बिना कोई काम होगा नहीं। हम यहाँ से दिल्ली गए हों और गाइड को ढूँढें तो वह क्या कहलाएगा? गुरु! वह गुरु ही कहलाएगा। पैसे दिए इसलिए गाइड बन जाता है। गुरु मतलब जो हमें मार्ग दिखाएँ, गाइड की तरह। प्रश्नकर्ता : इसलिए मार्गदर्शन की ज़रूरत तो पड़ेगी ही! दादाश्री : हाँ, मार्गदर्शन दें, वे गुरु कहलाते हैं। वह रास्ता दिखानेवाला कोई भी हो, वह गुरु कहलाएगा। सर्व श्रेणी गुरु अवलंबित प्रश्नकर्ता : गुरु रास्ता बता दें, उस रास्ते पर चलें। फिर गुरु की ज़रूरत है या गुरु को छोड़ देना चाहिए? दादाश्री : नहीं, ज़रूरत है ठेठ तक। प्रश्नकर्ता : फिर क्या ज़रूरत है? दादाश्री : इस गाड़ी में ब्रेक था इसलिए टकराए नहीं, यानी इस ब्रेक को निकाल देना चाहिए?

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