Book Title: Guru Shishya
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 12
________________ गुरु-शिष्य गुरु अर्थात् गाइड प्रश्नकर्ता : मैं बहुत जगह पर घूमा हूँ और सब जगह मैंने प्रश्न पूछे कि गुरु अर्थात् क्या? लेकिन मुझे कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला। दादाश्री : हमें यहाँ से स्टेशन जाना हो ओर रास्ते में चलते-चलते उलझ जाएँ और रास्ता नहीं मिले, रास्ता भूल गए हों तो किसीसे पूछने की ज़रूरत है? किसकी ज़रूरत पड़ेगी? प्रश्नकर्ता : जानकार की। दादाश्री : वह जानकार अर्थात् गुरु! जब तक रास्ता नहीं मालूम हो तब तक रास्ते में किसीको पूछने की ज़रूरत पड़ती है। किसी छोटे बच्चे से भी पूछना पड़ सकता है। जिसे-जिसे पूछना पड़े, वे गुरु कहलाते हैं। गुरु हों, तभी रास्ता मिलता है। ये आँखें नहीं हों तो क्या होगा? गुरु, वह दूसरी आँख है! गुरु मतलब जो हमें आगे की सूझ दें। गुरु की ग़रज़ किसे? प्रश्नकर्ता : आपका ऐसा कहना है कि गुरु ज़रूरी हैं? दादाश्री : ऐसा है न, जो रास्ता खुद भूला है, और वह रास्ता खुद को पता नहीं चले, स्टेशन का रास्ता नहीं जानते हों, तब तक मुश्किल पड़ती है। लेकिन रास्ते का जानकार मिल गया तो हम तुरंत स्टेशन पर पहुँच जाएँगे न?

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