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किसे ज़रूरत नहीं है गुरु की? वह शिष्य कहलाए नहीं देखते भूल कभी गुरु की पूज्यता नहीं टूटे, वही सार इसमें दोष किसका? सन्निपात, तब भी वही दृष्टि गुरु - पाँचवी घाती उल्टा भी नहीं सोचना गुरु का वहाँ उपाय करना रहा गुरुभक्ति तो खोजाओं की। नहीं तो घड़े को बनाओ गुरु उत्थापन, वह तो भयंकर गुनाह फिर गुरु के तो दोष ही नहीं.... वास्तव में तो श्रद्धा ही फलती है श्रद्धा रखें या आनी चाहिए? वहाँ श्रद्धा आ ही जाती है खोजी तो ऐसा नहीं होता ऐसी श्रद्धा के बिना मोक्ष नहीं है। 'यहाँ' पर श्रद्धा आती ही है। अंतरपट, रोकें श्रद्धा को ज्ञानी, श्रद्धा की प्रतिमा फिर वैराग्य किस तरह आए? उसमें भूल उपदेशक की अनुभव की तो बात ही अलग शब्दों के पीछे करुणा ही प्रवाहित वचनबल तो चाहिए न लेकिन वह तरीक़ा सिखाइए सच्चे गुरु के गुण तब कहलाएगा, गुरु मिले | इस तरह सच्चा 'धन' परखा जाए खुली करी बातें, वीतरागता से
७७ किसकी बात और किसने पकड़ी? ७८ गुरु का बेटा गुरु? ७९ पूजने की कामना ही काम की ८० रहे नहीं नाम किसीके ८१ ध्येय चूका और घुसी भीख ८२ भीख से भगवान दूर
प्योरिटी के बिना प्राप्ति नहीं ८४ अप्रतिबद्धता से विचरें वे ज्ञानी ८४ वह भगवान को नहीं पहुँचता ८५ धर्म की क्या दशा है आज! ८७ इसमें कमी कहाँ? ८९ लालच ही भरमाए ८९ गुरु में स्वार्थ नहीं होना चाहिए ९० पदार्पण के भी पैसे ९१ प्योरिटी ही चाहिए ९३ मुख्य ज़रूरत, मोक्षमार्ग में ९५ उसीका नाम जुदाई
सर्व दुःखों से मुक्ति माँगनी, या... ९६ प्योरिटी 'ज्ञानी' की ९७ खुद की स्वच्छता अर्थात्... ९८ गुरुता ही पसंद है जीव को ९९ गुरुता ही पछाड़ती है अंत में १०० आपने शिष्य बनाए या नहीं? १०१ 'आप' गुरु हैं या नहीं? १०१ इस तरह से ये सभी गुरु १०२ 'इसके' सिवाय नहीं दूसरा...
दिशा बदलने की ही ज़रूरत १०४
जगत् के शिष्य को ही जगत्... र ऐसा यह अक्रम विज्ञान १०७
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