Book Title: Guru Shishya
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 10
________________ गुरु अर्थात् गाइड गुरु की ग़रज़ किसे? भुलावे में, मार्गदर्शक साथी सर्व श्रेणी गुरु अवलंबित गुरु बिना 'ज्ञान' नहीं अनुक्रमणिका स्वयंबुद्ध भी सापेक्ष कब तक गुरु ज़रूरी ? 'गुरु अनावश्यक', वह बात गलत उल्टा सिखाया, वह भी गुरु जिनसे सीखे, वे भी गुरु गुरु-विरोधी, पूर्वग्रह से ग्रसित गुरु की ज़रूरत तो ठेठ तक निमित्त ही महा उपकारी वह बात खरी, लेकिन निश्चय में 'गलत' का ज्ञान ज़रूरी हैं 'निमित्त', फिर भी 'सर्वस्व' ही सत् साधन, समाए 'ज्ञानी' में मन से माना हुआ नहीं चलता 'आपके' गुरु कौन? उपकार, पूर्व के गुरुओं का महत्ता ही जीवित गुरु की मूर्ति, वह भी परोक्ष भक्ति स्वच्छंद रुके, प्रत्यक्ष के अधीन ही देखते ही सिर झुक जाए गुरु आँखों में समाएँ, वैसे वह किल्ली समझ लेनी है फर्क, गुरु और ज्ञानी में.... अनासक्त गुरु काम के कितनी कमी निभाई जाए ? सद्गुरु किसे कहें? बड़ा फर्क है, गुरु और सद्गुरु में १ १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ७ १० ११ १३ १५ १७ १९ २० २२ २२ २३ २४ २५ २७ २७ ३० ३० ३१ ३३ ३४ वैसे गुरु मिलें, तो भी अच्छा सद्गुरु की शरण में... पहचानने के बाद ही शरण सद्गुरु मिले, वही योग्यता सद्गुरु को सर्व समर्पण परिणाम, गुरु कृपा के.... अहंकार जाता है-कृपा से ... गुरुमंत्र, नहीं देता फिसलने गुरु का ध्यान करना हितकारी शक्तिपात या आत्मज्ञान ? गुरु कहाँ तक पहुँचाते हैं ? गुरु से चेला सवाया तब संपूर्ण शुद्धि हो कमी चारित्रबल की शिष्यों में भेद, गुरु शिष्य के बीच ..... ऐसे धर्म बदनाम हुआ शिष्य को मात्र करना है, विनय बरते उतना ही बरतवा पाए वह सामर्थ्य ही सबकुछ सँभाल ले दादा ने लुटाया है ज्ञान गहन और ऐसे ठिकाने पर लगाया नहीं तो पत्नी को भी गुरु बनाएँ गुरु मिले फिर भी ? - क्लेश मिटाएँ, वे सच्चे गुरु नहीं गँवाना एक ही गुरु.... व्यवहार में गुरु : निश्चय में ज्ञानी नहीं भूलते उपकार गुरु का शिष्य की दृष्टि से ३५ गुरु का प्रेम ३६ अनोखी गुरुदक्षिणा ३७ अंतर्यामी गुरु ९ - राजपा ३८ ३९ ४० ले ते च् चे 9 ४२ ४३ ४५ ४६ ४७ ४७ ४८ ४९ ५० ५० ५१ ५४ ५६ ५७ ५८ ५९ ६३ ६४ ६८ ६९ ७१ ७२ तु तुम पु पु पु पु ७२ ७३ ७५ ७५ ७६ ७६

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