Book Title: Gujaratna Aetihasik Lekho Bhag 02
Author(s): Girjashankar Vallabhji Acharya
Publisher: Farbas Gujarati Sabha
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अक्षरान्तर
पतरू पहेलं.
१ ॐ स्वस्ति नान्दीपुरीतो [ । ]विविध विमलगुणरत्नसंपा[ प ]दुद्भासितसकलदिङ्मुखे परित्राताश[ - ] सपक्ष [ मह ] महीभृति
-
२ सततमविलङ्घितावधौ स्थैर्य्यगा [
]भि [ भी ] लावण्यवति महासत्वतयात् [f] ]दघा[ षौ ] श्रीसहजन्माकृ
गुजरातनां- ऐतिहासिक लेख
दुरवगाहे गुर्ज्जरनृपति वंशमह [
३ ष्णहृदयाहितास्पदः कौस्तुभमणिरिव विमलयशोदीधितिनिकरविनिहतकलितिमिरनिचयः सत्पक्षो वैनतेयइवाकृष्टशत्रु
४ नागकुल संततिरुत्पत्तित एव दिनकरचरणकमलप्रणामापजीवाशेषदुरित निवहः सामन्तदद्दः[ । ]प्रतिदिनमपेतशङ्कं येन
५ स्थितमचलगुणनिकरके सरिविरा[]जतवपुषा विनिहतारिगजकुम्भविगलितमुक्ता फलो[ ल ]च्छलप्रणी[ की ]र्ण विमलयशोवितानेन रूपानु
६ रूपं सत्त्वमुद्वहताकेसरि किशोरकेणेवोपरि क्षितिभृतां [ । ]यंचा तिमलिनकलियुगतिमिरचन्द्रमसमनुदिवसमन्य[े ]न्यस्पर्द्धय[ े ] वा
७ ययुः कलासमूहादयो गुणा विक्रमानीतमदविलासाल सगतयोरा तिगजघटाः प्रमदाश्व[ । ]यस्यचाविरतदान
८ प्रवाहप्रीणितार्त्यिमधुकरकुलस्य रुचिरकीर्त्ति वशासहायस्य सततमस्खलितपदं प्रसरतः सद्वंशाहितशोभागौरवस्य
करघाटविनिहतक्षितिभृदुन्नततनूरुहस्यरेवानिर्झरसलिलप्रपात -
मधुरनिनदस्य भगो
१० वाः समुन्नतपयोधराहितश्रियो दयिता इव मुदे विन्ध्यन गोपत्यका [ । ]यश्वोपमीयते शशिनि सौम्यत्ववैमल्यशोभाकला
११ भिर्न कलङ्केन श्रीनिकेतशोभासमुदयाधः कृतकुलकण्टकतया कमलाकरे न पड़जन्मवयासत्वोत्साहविक्रमैमृगाधिरा
१२ जेन क्रू[ क्रू ]राशयतया लावण्यस्थैर्य ग[T]-भीर्य्यस्थित्यनुपालनतयामहोदधो[ धौ ]नव्यालाश्रयतया सत्कटकसमुन्नतविद्याधरावा
९भद्रमतंगजस्यवे
१३ सतया हिम [ मा ] चले न खष [ शे ] परिवारतया [ । ] यस्य च सद्भा[ भो ]गः शेषोरगस्येव विमलकिरणमणिशताविष्कृतगौरवः सकलजगत्साधार
१४ णो [ । ]यस्य प्रकाश्यते सत्कुलं शीलेन प्रभुत्वमाज्ञया शस्त्रमराति प्रणिपातेन कोपोनिग्रहेण प्रसादः प्रदानैर्षम्म देवद्विजति ·
૧ નં. ૧૧૦ પુક્તિ ૧૩માં પણ में बी २ महिने पंडित અપૂર્વ રીતે જોડેલા છે.
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પ્રા. ડૉસનની સૂચનાથી સુધારેલુ' વાંચન २७ भो 'द्विज' शुभां 'आ' तो सी। जना उपरना सीटा साथै
( खुष वायन छ.
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