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२०
गणितानुयोग प्रस्तावना
यहाँ सभी मान दाशमिक संकेतना में दिये गये हैं ।
सूत्र ३६०, पृ० २४५ -
इस सूत्र में दाशमिक संकेतना के अतिरिक्त भिन्नों का भी निपण संकेत दिया गया है। यथा "बावडिं जोगाई अडवणं च उद्धं उच्चतेणं, इक्कतीसं जोयणाई कोसं च आयाम विक्खंभेणं" भिन्नरूप ६२ तथा ३१1⁄2 का निरूपण करता है । सूत्र ३२, पृ० २४६
इस सूत्र में यमक की चौड़ाई १२००० योजन और परिधि ३७९४८ योजन से किंचित अधिक बतलाई गई है । सुत्रानुसार, परिधि निकालने हेतु
१२००० X V१० = १२०००X३.१६२२७ . परिधि = ३७६४७ २४ योजन होती है । अतः ग्रन्थकार ने इसे ३७६४= योजन से कुछ अधिक बतलाया है ।
यह मान दाशमिक संकेतना में है, तथा प्रासादों की ऊँचाई ""एक्कली जोगाई कोस च उद्ध उच्च" अर्थात् २१३ -योजन तथा आयाम विष्कम्भ "साइरेगाई अद्ध सोलस जोयणाइं" अर्थात् १५ योजन बतलाई गई है ।
इसी प्रकार अन्य माप भी भिन्न निरूपित करने की इसी शैली के साथ बतलाये गये हैं ।
सूत्र ३६३, पृ० २५०---
जो पर्वत १०० योजन चौड़ा है। उसकी परिधि ३१६ योजन से अधिक बतलाई गई है। यहाँ १००X३ १६२२७ द्वारा ही यह मान = V१० या ३ १६२२७ लेकर निकाला गया है।
इसी प्रकार अन्य प्रमाण दृष्टव्य हैं ।
सूत्र ३६७, पृ० २५२
यहाँ वैताढ्य पर्वत की बाहु ४८८
३३ है । इसे ४८८ ३८
१६ १६
तथा अद्धभाग दी गयी
• रूप में ति० प० १/४ गाथा १८६, १६० में
३३
१६ १ प्राप्त किया गया है। यहाँ ४८८ + + =४५८. १६ ३८
होता
है । यहाँ १ योजन के १६ भाग और उन १६ भाग में से एक भाग का भी आधा भाग आशय प्रतीत होता है, इस प्रकार एक योजन के उन्नोसिया भाग का आधा भाग यहाँ अभिप्रेत प्रतीत होता है।
इसी प्रकार उसका आयाम १०७२०
है, जो ति० प० भाग
जीवा १०७२०२१ योजन की गयी है।
सूत्र ४००, पृ० २५३
१०७४३६१ • दिया गया है जो इसी प्रमाण में ति० प० भाग १/४
गाथा १८६ में दिया गया है। इस प्रकार यह सूत्र शोध का विषय प्रस्तुत करता है ।
यहाँ पल्योपम स्थिति का उल्लेख है
१२ १६
१ / ४, गाथा १८५ में विजयार्द्ध की
उसका धनुष्ठ
सूत्र ४०३, पृ० २५५
योजन दिया गया
सूत्र ४०२, पृ० २५५---
यहाँ वृत्त वैताढ्य पर्वत, शब्दापाती नाम का १००० योजन आयाम विष्कम्भ वाला है जिसकी परिधि ३१६२ योजन से कुछ अधिक की परिधि वाला बतलाया गया है। स्पष्ट है कि
१०००X३·१६२२७= ३१६२·२७ परिधि का मान १० को अनुमानतः ३·१६२२७ लेकर व्यवहृत करने से उक्त मान आता है। शेष संख्याएँ दाशमिक संकेतना में हैं ।
यहाँ पल्योपम स्थिति का उल्लेख है ।
सूत्र ४१७, पृ० २६४
सूत्र ४०८, पृ० २५६
यहाँ मूल में चौड़ाई = योजन है, परिधि ८ ३·१६२२७ २५-२६८१६ योजन होगी जो यहाँ २५ योजन से कुछ अधिक बतलाई गई है। इसी प्रकार अन्य प्रमाण दृष्टव्य हैं ।
सूत्र ४१३, पृ० २६३
यहाँ अश्व स्कन्ध के सदृश अर्धचन्द्र के संस्थान का उल्लेख है जो ज्यामितीय है । "बहुसमतुल्ला - जाव - परिणाहेणं" गणितीय उल्लेख है । इसी प्रकार अगला सूत्र ४१४ पृ० २६३ दृष्टव्य है।
यहाँ संस्थाएँ दाशमिक संकेतना में दी गई हैं।
सूत्र ४२६, पृ० २६७
यहाँ गंधमादन वक्षस्कार पर्वत का आयाम ३०२०६
१६
योजन दिया गया है, अन्त में इसका माप चौड़ाई में अंगुल के असंख्यातवाँ भाग बतलाया गया है। माप दाशमिक संकेतना में