Book Title: Epigraphia Indica Vol 23
Author(s): Hirananda Shastri
Publisher: Archaeological Survey of India

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Page 15
________________ EPIGRAPHIA INDICA. [Vol. XXIII. 2 यदेतदग्रेसरमंव ( ब ) रस्य ज्योतिः स पूषा पुरुषः पुराण: 1 अथास्य पुषो मनुरादिराजस्तदन्वये भूविका ३ बो 4 रयो मार्गणे कल्पवृचाः । तहंसा (शा) चेदिदेसे (शे) कलचुरिरिति च ख्याति - मौखरेन्द्रा जातः कोकनदेव अष्टादसा (शा) रिकरिकुंभविभन्न सिंहाः पुषा ॥२॥ तस्माच्छ्रातिकीर्तेः सकलगुणधरा हैहया नेकसः' को जाता: प्रत्यर्थिपुष्योपतिकरि 5 पतिररिकुलमा धूमकेतुः ॥२॥ भुजां (ब) भूवुरतिसौ (शौर्यप 6 राय तस्य 1 तचाग्रजो नृपवरस्त्रिपुरोस (श) आशी (सी) त्यार्खे (खें) च मंडलपतीस चकार वं (बं) धून (न्) ॥४॥ तेषामनू' जस्तु 7 कलिंगराजः प्रतापवन्हि (चिपितारिराज: । जातीखये [दु]'ष्टरिपुप्रयोरप्रियानमाम्भोरुहपार्व्वणे 8 न्दुः ॥५॥ तेनाथ चंद्रवदनोजनि रत्नराजो विस्वो (खो) पकारक रुयातिपुष्यभारः । येन वा वायु 9 गनिर्म्यि (नि) तदि (वि) क्रमेण नीतं यस (श) स्त्रि (स्त्रि) भुवने विनिहत्य स(भ) जून (न्) ॥५॥ पृषदेवोभवत्तस्यावृपः सा(मा) र्दूल 10 विक्रमः । नखदर्पणसंक्रान्तनमहू पालमंडलः ॥७॥ अथ बचिररुचिस्ती(श्री) राश्रयः सत्कलाना 11 मनुपचितकलंकीनमूर्तिः सुत्त: [*] सकल [ गु] पसमूहः श्री (ची) मतदा सूनुर्व्विधुरिव सुकतानारधा (वा) म जाजज्ञदेव 12 : ॥ ८ ॥ रत्नदेवोभवत्तस्मादभूतोपमविक्रमः । यच्चोडगंगगोकर्णौ युधि चक्रे परामुखी' ॥ ८ ॥ ततोभूदासीम 13 चितिवलयविक्रान्त महिमा हिमानीयकान्तगदपि यशोभि (ई) वलयन (न्) । रथे कहा (च) षिरिपदलनदोचापरिसमः 1 Read [नेकशः ± The intended change of न् to या here is ungrammatical. See Pänini, VIII, 4, 1. Read ईरेन्द्रा • Read - विभङ्ग. read The vowel of is lengthened for the sake of metre. Many other records of the Kalachuris of Ratanpur चनजस्य which seems to be proper, since such a word is required to be connected with. See Sarkho plates (above, Vol. XXII, p. 165, footnote 1). Other cognate plates read दिष्ट. This word which was omitted here is supplied with the figure 11 at the bottom of the plate. The engraver had first incised the conjunct at the top of मु The vertical stroke of a is not engraved. त but afterwards cancelled it and incised only the letter

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