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दिगम्बर जैन साधु
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स्नेह सौजन्य की मूर्ति :
. आचार्य श्री का हृदय सरोवर स्नेह और सौजन्य से लबालब भरा हुआ है। जो भी व्यक्ति उनके सामने जाता है, स्नेह और सौजन्य से अभिषिक्त हुए विना नहीं रहता। राजा हो या रंक, श्रीमन्त हो या निर्धन, वालक हो या वृद्ध, नर हो या नारी, अनुरागी हो या विरोधी, निन्दक हो या प्रशंसक सभी पर समान भाव से स्नेह की पीयूष धारा वरसाने वाले आचार्य श्री धर्मसागरजी महाराज अनायास ही सवको अपना बना लेते हैं । प्रायः देखा जाता है कि जब कोई व्यक्ति साधारण से असाधारण स्थिति पर पहुंचता है तो वह साधारण व्यक्तियों से अपने आपको ऊँचा मानते हुए गर्वानुभूति करता है । किन्तु आचार्यश्री में ऐसा नहीं है ।
___ कुछ लोगों का कहना है कि श्रद्धा अजान की सहचारिणी है, किन्तु आचार्यश्री ने अपने व्यक्तित्वबल से जहां साधारण जन की श्रद्धा का अर्जन किया है वहीं समाज के विद्वज्जन भी आपके सरल, शांत, सौम्य एवं निस्पृह वृत्ति से प्रभावित हुए हैं । आचार्यश्री की स्मरण शक्ति भी अद्भुत है।
आपकी जिह्वा पर जैन दर्शन के संस्कृत प्राकृत भाषा से सम्बद्ध अनेकों श्लोक विद्यमान हैं और आप निरन्तर उठते बैठते उनका पारायण करते रहते हैं।
प्रवचन शैली:
आचार्यश्री की धर्मदेशना प्रणाली अपने ढंग की निराली है, उनके प्रवचनों में न तो दार्शनिक स्तर की सूक्ष्मता है और न ही प्राध्यात्मवाद की अज्ञेय गहराईयां हैं। लौकिकजनों को अनुरन्जित कर लौकेषणा से अनुप्राणित भाषा का प्रयोग भी उनके प्रवचनों में नहीं होता है । उनके हृदय की निर्मलता सरलता और विरक्तता उनकी वाणी में प्रकट होती है, क्योंकि आगमानुसार संयम से परिपूर्ण उनका प्रवचन तथा उसके अनुरूप ही जीवन भी संयमित है । आपके प्रवचनों में खड़ी हिन्दी में राजस्थानी ( मारवाड़ी) भाषा का पुट अत्यन्त मधुर लगता है । आगम समर्थित वैराग्योत्पादक आपकी वाणी ने अनेकों भव्यात्माओं को प्रभावित किया है जिसके फलस्वरूप वे अपने आत्मकल्याण के मार्ग पर अग्रसर हैं । कितने ही पापानुगामी जीवों ने पाप पथ का परित्याग करके धर्ममार्ग को अपनाया है । आप अपने प्रवचनों में सदैव कहा करते हैं कि वास्तविक आनन्द की सिद्धि भोग में नहीं है त्याग में है और व्यक्ति का जीवन भी, समीचीन त्याग से उन्नति पथ पर अग्रसर होता है । भोग आत्म पतन और त्याग आत्मोन्नति का राजपथ है। आचार्यश्री आत्मविद्या के सजग साधक परमयोगी हैं। उनकी आत्मसाधना का प्रत्यक्ष रूप उनके दर्शन मात्र से ही प्रतिबिम्बित होता है।