Book Title: Digambar Jain Sadhu Parichaya
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Dharmshrut Granthmala

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Page 624
________________ ५७६ ] ... .. दिगम्बर जैन साधु . " मुनिश्री मल्लिसागरजी महाराज - -d TRE IX आप नांदगांव ( नासिक ) के रहने वाले हैं, आपके पिता का नाम दौलतरामजी सेठी और माता का नाम सुन्दरबाई था। आप खण्डेलवाल हैं । गृहस्थावस्था में आपका नाम मोतीलाल था, पाँच वर्ष की अवस्था में आपके माता पिता ने विद्याभ्यास के लिये पाठशाला में भेजी, आपने अल्पकाल ही में विद्याभ्यास कर लिया । २५ वर्ष की अवस्था में ( नांदगांव में ) श्री १०५ ऐलकः पन्नालालजी ने चातुर्मास किया। उस वक्त आपने कार्तिक सुदी. .११ सं० १९७६ के दिन दूसरी प्रतिमा के वंत ग्रहण किये। आपने शादी भी नहीं की, क्योंकि.. आप अल्पवय से, ही वैराग्य रूपःथे और आप ऐलक पन्नालालजी के साथ ही रहने लगे तथा आपने गृह का भार त्याग दिया। उनके साथ में रहकर विद्याध्ययन भी किया । सम्वत् १९६० में प्रथम चातुर्मास फीरोजपुर छावनी ( पंजाब ) दूसरा चातुर्मास सं० १९८१ में देववन्द । तीसरा चातुर्मास रामपुर, चौथा चातुर्मास वर्धा में किया पश्चात् गुरू की आज्ञा से अलग होकर बारां ( सिवनी में किया ) वहां से ग्रामों में भ्रमण करते हुए गिरनारजी मऊ (गुजरात) ईडरराज्य में अगहन सुदी ७ सम्वत् १९८४ के दिन श्री १०८ आचार्य शान्तिसागरजी छाणी महाराज के पाद मूल में आपने सप्तम प्रतिमा के व्रत ग्रहण किये । वहां से तीर्थराज शिखरंजी की यात्रा के लिये विहार किया, वहां पर दक्षिण संघ भी उपस्थित था, उनके भी दर्शन किये । सम्बत् १६८५ . का चातुर्मास आपने श्री १०८ प्राचार्य शान्तिसागरजी दक्षिण वालों के संघ कटनी ('मुडवारा ) में किया सम्वत् १९८६ का चातुर्मास कानपुर, पावापुर लस्कर आदि स्थानों में भ्रमण करते हुए पूर्ण किया । सम्वत् १६८७ का चातुर्मास श्री १०८ प्राचार्य शान्तिसागरजी छाणी के पादमूल में इन्दौर में किया तथा भाद्रपद शुक्ला ७ शनिवार को पांच हजार जनता के समक्ष क्षुल्लक दीक्षा के व्रत . ग्रहण किये । वहां से विहार कर सिद्धवर कूट आये। वहां श्री १०८ प्राचार्य शान्तिसागरजी छाणी . के चरण कमल में दिगम्बरी दीक्षा की याचना की। मिति मंगसर बदी १४ सम्वत् १९८७ बुधवार ( वीर सम्वत् २४५७ ) के दिन दिगम्बरी दीक्षा धारण की। ___ उस समय केश लौंच करते हुए आप जरा भी विचलित न हुए । दीक्षा संस्कार की सब विधि मन्त्र सहित श्री १०८ आचार्यवर्य शान्तिसागरजी छाणी के कर-कमलों द्वारा हुई । आपका समाधिमरण मांगीतुगी में आ० महावीरकीतिजी के सान्निध्य में हुवा।

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