Book Title: Digambar Jain Sadhu Parichaya
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Dharmshrut Granthmala

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Page 653
________________ .. ...... . HILA . . inden दिगम्बर जैन साधु [ ६०५ ब्र० कमलाबाई श्रीमहावीरजी ___ चारित्र, ममता तथा लोक कल्याण की भावनाओं को एक साथ अपने आपमें आत्मसात् किये हुए ब्रह्मचारिणी श्री कमलाबाई जैन उन गिनीचुनी, विभूतियों में से हैं जिन्होंने एक परम्परावादी परिवार में जन्म लिया। बाल्यावस्था में ही विवाह होजाने के शीघ्र बाद वैधव्य की पीड़ा को भोगा । अपने दुख को भूल उन्होंने श्री महावीरजी के मुमुक्षु महिलाश्रम में अध्ययन करने के बाद स्वयं प्रादर्श महिला विद्यालय की स्थापना कर एक महान अनुकरणीय कार्य किया है। राजस्थान के कुचामन सिटी कस्बे में श्री रामपालजी पाटोदी के यहां श्रावण शुक्ला ६ वि० सं० १९८० को जन्मी श्री कमलाबाई स्वयं करुणा की मूर्ति -- .. ... ... ... ... हैं । यद्यपि उन्होंने स्वयं किसी बालक को जन्म नहीं दिया, किन्तु आज सैंकड़ों बालिकाओं को उनके मातृत्व की छाया में पोषण-संरक्षण मिल रहा है। आपकी सेवाओं के लिये कई बार आपका सम्मान-अभिनन्दन कर समाज तथा जन-प्रतिनिधियों ने आभार भी व्यक्त किया है किन्तु यह सब तो मात्र सामान्य श्रद्धा-प्रदर्शन ही है, आपकी सेवाओं का मूल्यांकन तो आने वाली पीढ़ियां ही कर सकेंगी। पाप शतायु हों और देश तथा समाज की संरचना में आपका मार्गदर्शन अनवरत मिलता रहे.यही वीर प्रभु से कामना है । ब्र० इच्छाबेन ( भावनगर ) आपका जन्म भावनगर ( गुजरात में ) सन् १९०२ में हुआ था । आपके पिताजी का नाम श्री छगनलालजी एवं माता का नाम जड़ावबाई था । आप ३ बहिनें थीं । आपकी शादी भावनगर में ही श्री कान्तिलालजी के साथ हुई, २ पुत्र तथा २ पुत्रियां हुई। प्रापका समाधिमरण पूर्वक स्वर्गवास वोरीवली ( बम्बई ) में तारीख २६-१२-६६ को हुवा था । आप श्री १०८ धर्मकीतिजी मुनिराज की गृहस्थावस्था की धर्मपत्नी थी । धर्म ध्यान व व्रत उपवासादि में अपना समय व्यतीत करती थीं। बड़े पुत्र धनसुखलालजी धामी के पास रहती थीं । अन्त में आपने सब प्रकार के परिग्रह का त्याग कर ६५ वर्ष की आयु में समाधिमरण किया। क्षुल्लक शीतलसागरजी ने आपको अन्त समय तक सम्बोधित किया। आचार्य महावीरकीतिजी महाराज से व्रत अंगीकार किये थे। आप चारित्र शुद्धि नामक व्रतों के उपवस कर रहीं थीं।

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