Book Title: Digambar Jain Sadhu Parichaya
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Dharmshrut Granthmala

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Page 657
________________ दिगम्बर जैन साधु [ ६०९ ब्र० सूरजमलजी निवाई P:.: M '' . .. . श्री ब्र० सूरजमलजी बाबाजी का जन्म वि० सं० १९७९ मंगसिर बदी एकम रविवार को प्रातःकाल को मंगल बेला में जामुनिया ( भोपाल ) मध्यप्रदेश में हुआ था। आपके पिता का नाम धर्मनिष्ठ श्रावक थी मथुरालालजी तथा माता का नाम महताब बाई था। wws आपके बड़े भाई का नाम श्री गोपीलालजी ( गप्पूलालजी ) तथा ६ बहनें थीं। श्री रम्भावाई, श्री शक्करबाई, श्री बतासीवाई, श्री रामप्यारीबाई, श्री धापूबाई एवं ब्र० कस्तूरबाईजी। जब आपकी ३ वर्ष की उम्र थी तभी पिताजी का स्वर्गवास हो गया तथा १० वर्ष की उम्र में माताजी का वियोग हो गया। मां के स्वर्गवास होने के बाद आप बड़ी बहिन धापूवाईजो के पास अजिनाश चले गये तथा वहां पर लौकिक शिक्षण प्रारम्भ किया। मुनिसंघ दर्शन-पाप प्रजिनाश में विद्या अध्ययन कर रहे थे । उस समय वि० सं० १९९४ में खातेगांव में परम पू० मुनि श्री जयकीर्तिजी के दर्शन किये तथा महाराजजी के दर्शनों से प्रभावित होकर महाराजजी की सेवा में रह गये । महाराजजी का विहार इन्दौर की ओर हुआ तथा इन्दौर में पू० मुनि श्री जयकीर्तिजी का समाधिमरण हो गया। इस समय इन्दौर में पू. आचार्य श्री वीरसागर जी महाराज विराजमान थे अतः अब आप आचार्य श्री के चरण सान्निध्य में आ गये। सं० १९६५ में आचार्य श्री वीरसागरजी का चातुर्मास खातेगांव में हुआ तब आपने प्राचार्य श्री से दूसरी प्रतिमा के व्रत धारण किए । ३ माह पश्चात् आप सप्तम प्रतिमा के व्रत धारण कर प्रात्म साधना की ओर अग्रसर हुए।

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