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दिगम्बर जैन साधु
मुनिश्री गणेशकीर्तिजी महाराज द्वारा
दीक्षित शिष्य
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ऐलक श्री पन्नालालजी
क्षुल्लक श्री मनोहरलालजी वर्णी क्षुल्लक श्री चिदानन्दजी
ऐलक श्री पन्नालालजी
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जैन समाज के पांच दशक पिछले इतिहास की ओर देखें तो ज्ञान और चारित्र के मार्ग में विरले ही संत दृष्टिगोचर होते हैं जिन्होंने अज्ञानान्धकार में उन्मग्न समाज को पथ प्रदर्शन करने की कृपा की । जमाना ही ऐसा था कि रूढियों से घिरी सामाजिक मर्यादाएँ विवेक की तीक्ष्णता को जंग लगाती चली जा रही थी । ऐसे समय में ज्ञान और चारित्र की मशाल थामे हुए यदि कोई समाज की तंद्रा को भंग करने का प्रति साहस करता है तो निश्चय ही वह अवतरित विभूति ही है । ऐलक पन्नालालजी म० ज्ञान चारित्र के धनी तो थे ही महान् समाजोद्धारक के रूप में भी विख्यात थे। साधु की चर्या समाज पर आश्रित रहती है प्रतिदान में साधु समाज को धर्मामृत
पान कराता है । अलबत्ता इसकी आलोचना यदा-कदा होती रहती है । परन्तु ऐ० पन्नालालजी उनमें से न थे । स्व कल्याण के साथ साथ परकल्याण की भावना का दरिया आपके हृदय में लहरा रहा था । फलतः आपने त समयानुसार विलुप्त हो रही ज्ञान परम्परा के साधनभूत जिनवाणी की रक्षा अपना ध्येय निश्चित किया । आपके ही सद् प्रयास से (सं० १९७१) झालरापाटन, (सं० १९७६)