Book Title: Digambar Jain Sadhu Parichaya
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Dharmshrut Granthmala

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Page 613
________________ [ ५६५ दिगम्बर जैन साधु मुनि श्री अमृतसागरजी महाराज प्रापका जन्म सावन वदी १ संवत् १९६६ को हुआ तथा जन्म नाम हीरालालजी था। जाति चित्तौड़ा थी । आपके पिताश्री का नाम नेमचन्दजी एवं मातुश्री का नाम गुलाबवाई है । तीन पुत्र व चार पुत्रियां हैं। धर्म शिक्षा आपकी सामान्य ही रही है । दूसरी एवं पाँचवी प्रतिमा आदिसागरजी । ( कुरावड़ वाले ) से ग्रहण की । संवत् २०२७ में फाल्गुन सुदी ११ को शिखरजी में मुनि श्री १०८ विमलसागरजी महाराज से सातवी प्रतिमा धारण की । ऐलक दीक्षा देपुरा में बैसाख सुदी २ सन् १९७७ को आ० श्री १०८ पार्श्वसागरजी महाराज से एवं मुनि दीक्षा अकलूज महाराष्ट्र में श्रावण .. सुदी ७ सन् १९८२ को धारण की । आप अभी गुरु के सान्निध्य में ही हैं। मुनि श्री वासुपूज्यसागरजी महाराज जन्म स्थान-महोवा ( पन्ना M. P. ) जन्म सम्वत्--२०११ को गोलालारे जाति में पिताजी का नाम-श्री कल्लूलालजी सिंघई माताजी-श्री रामबाईजी आपका पूर्व नाम-श्री दयाचन्दजी शिक्षा-११वीं दीक्षा स्थल-सागवाड़ा ( राजस्थान ) दीक्षा गुरु-मुनि पार्श्वसागरजी से १९७७ में आपने छोटी उम्र में चारों अनुयोगों का गहन अध्ययन किया है । समयसार, प्रवचनसार, गोम्मटसार, नियमसार आदि ग्रन्थों की गाथाएँ कण्ठस्थ कर ली हैं । वर्तमान में आप धवलराज ग्रन्थ का स्वाध्याय कर रहे हैं। वर्तमान प्रायु २९ वर्ष की है। आप निरन्तर ज्ञान ध्यान में लीन रहते हैं ।

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