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दिगम्बर जैन साधु
मुनिश्री महिलसागरजी महाराज
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आपका जन्म कर्नाटक प्रान्त के जिला बेलगांव के अन्तर्गत ग्राम सदलगा में मातेश्वरी काशीबाई की कोख से वि० सम्वत् १९७४ में सुप्रभात की शुभलग्न में हुआ था । आपका बचपन का नाम मल्लप्पा था। आपके पिता श्री पार्श्व अप्पा सरल, परिश्रमी, धर्मात्मा, दयालु एवं शान्त स्वभावी थे । उनका तम्बाकू का व्यापार तथा खेतीबाड़ी का कार्य था । ग्राम के गणमान्य व्यक्तियों में उनकी गिनती होती थी ।
स्कूल की शिक्षा के उपरान्त हमारे चरित्र नायक श्री मल्लप्पा को पिताजी ने व्यापार में लगा दिया । आपने
बड़े परिश्रम और न्याय से व्यापार को चलाया । परन्तु प्रारम्भ से ही आपकी धर्म में रुचि थी । प्रातःकाल उठकर श्री मन्दिरजी में जाना, रणमोकार मंत्र की माला जपना आदि नित्य के कार्य थे । आपका विवाह एक सम्पन्न घराने में हुआ था । आपके चारपुत्र और दो पुत्रियां हुई ।
दस वर्ष पर्यन्त ब्रह्मचर्य व्रत पालते हुए आपने माघ शुक्ला ५ वि० सं० २०३२ को मुजफ्फर नगर ( उ० प्र०) में परम पूज्य १०८ आचार्य श्री धर्मसागरजी महाराज से अपार जन समूह के समक्ष सीधे ही मुनि दीक्षा ली। आपका नाम श्री मल्लिसागरजी महाराज रखा गया। आचार्य श्री ने आपसे दो माह के लिये नमक त्यागने को कहा परन्तु धन्य है आपका त्याग और गुरुभक्ति कि आपने जीवन भर के लिये नमक का त्याग कर दिया ।
आपके गृहस्थ जीवन की धार्मिकता और संस्कारों का प्रभाव आपके परिवार पर बहुत गहरा पड़ा । बड़े पुत्र महावीरजी व वड़ी पुत्री गृहस्थाश्रम में है ।
आपके बड़े पुत्र बाल ब्रह्मचारी श्री विद्याधर ने १८ वर्ष की अल्पायु में श्री १०८ आचार्य श्री ज्ञानसागरजी महाराज से सीधे ही मुनि दीक्षा ली और २३ वर्ष की अल्पायु में ही आचार्य पद से विभूषित किये गये। जिनका दीक्षा महोत्सव अजमेर में अत्यन्त समारोह पूर्वक मनाया गया था ।