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दिगम्बर जैन साधु
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प्रायिका धर्ममती माताजी
मारवाड़ प्रान्त के अन्तर्गत कुचामन शहर के पास लणवां नामक एक ग्राम है। ग्राम में वैश्य शिरोमणी खण्डेलवाल जात्युत्पन्न चंपालालजी जैन श्रावकोत्तम रहा करते थे । धर्मपरायणा धर्मपत्नी के यहां सन् १८६८ में श्रावण शुक्ला द्वितीया के दिन कन्यारत्न ने जन्म लिया था। आप ५ भाईबहिन थे। ९ वर्ष की उम्र में शादी हो गई। पर दुर्भाग्यवश लखमीचन्दजी का असामयिक स्वर्गवास हो गया । संसार का नियम जानकर आपके मन में वैराग्य भाव जागृत हुवा तथा आपका मन धार्मिक कार्यों में लगना शुरु हुआ, साथ ही नाना प्रकार के व्रत उपवास करना । आप बीस वर्ष तक दशलक्षण पर्व में दश उपवास अष्टाह्निका में ८ उपवास एवं सोलह कारण के १ माह का उपवास करती थी। पूज्य माताजी ने सन् १९३५ में ३३ दिन का उपवास किया । सन् १९३६ दुर्ग में जयकीर्तिजी महाराज का वर्षायोग हुवा तब आपने सातवी प्रतिमा धारण की । सन् १९३६ में आपने जयकीतिजी महाराज से भायिका दीक्षा ली तथा आपका नाम धर्ममती रखा। पू० माताजी ने अपने जीवन काल में ३ हजार उपवास किये । अन्त में जयपुर के समीप खानियां में आचार्य देश भूषणजी महाराज के सान्निध्य में समाधि धारण कर शरीर त्याग किया। धन्य है आपकी तपस्या तथा त्याग ।
IMARIA