Book Title: Dharmdravya ka Sanchalan Kaise kare
Author(s): Dharmdhwaj Parivar
Publisher: Dharmdhwaj Parivar

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Page 15
________________ देवद्रव्य के विनाश में जगत का विनाश, देवद्रव्य के संरक्षण में जगत का रक्षण जगत के सभी जिनालयों का जिर्णोद्धार और अस्तित्व, देवद्रव्य की आय पर निर्भर करता है और इन सभी जिनालयों के अस्तित्व पर हमारे आत्मकल्याण और सद्गति की सुरक्षा निर्भर करती है । देवद्रव्य का जाने-अनजाने में स्वार्थ के लिए किया हआ थोडा भी भक्षण या उसका अनुचित उपयोग या बकाया राशि की वसूली में उपेक्षा अनंत उपकारी श्री जिनेश्वर भगवंत के और जगत के सर्व जीवों के प्रति द्रोह और विश्वासघात समान है । इसीलिए देवद्रव्य के अनुचित उपयोग / विनाश के साथ जगत के सभी जिन मंदिरों का और सर्व जीवों का विनाश (आत्मिक) हो जाता है और साथ में संचालकों (ट्रस्टियों) की दुर्गति भी सुनिश्चित हो जाती है । देवद्रव्य के भक्षण / विनाश के भयंकर परिणाम : थोडा भी देवद्रव्य का भक्षण या अनुचित उपयोग, अनंत भवों तक दुःख, दारिद्र और दुर्गति सुनिश्चित करता है। १. साकेंतपुर नगर के सागर श्रेष्ठी १,०००/- कांकणी (रुपये) का देवद्रव्य का कर्ज बाकी रखकर मरे तो उसके कारण उन्हें हजारों भव नरक और तिर्यंच के करने पडे । २. इंद्रपुर नगर के जैन मंदिर के जलते हुए दीपक से अपने घर का काम करने वाली और मंदिर के धूप से घर का चूल्हा जलाने वाली देवसेन की माता को ऊंट (CAMEL) का भव लेना पड़ा। ३. महेन्द्र माम के नगर में देवद्रव्य की बकाया राशि वसूल करने में प्रमाद के कारण बहुत देवद्रव्य का विनाश होने से उसके मुख्य संचालक को असंख्य भवों की दुर्गति हुई । ४.थोडे वर्ष पहले पश्चिम भारत के एक गाँव में देवद्रव्य की राशि का उपयोगशादी के गार्डन में करने से उसके संचालकों और संघ के गणमान्य लोगों को भयंकर परिणाम भुगतने पडे । IXIT) Main Educald a com www.jainelibrary.org

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