Book Title: Dharm Ke Dash Lakshan
Author(s): Moolchand Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 8
________________ जैन चित्रकथा बस तो राजन। यही है अन्तर हमारी दिव्य द्रष्टि में हाँ हाँ राजन ! रूप ही नहीं,यहां की हर वस्तु क्षणभंगुर है। और आपकी साधारण द्रष्टि में एक बूंद पानी के नाशवान है। देखते देखते नष्ट हो जाती है। स्त्री-पुत्र धननिकलने पर भी आपको पानीज्यों का त्यों दिखाई धान्य,दासी-दास,वैभव, बल, ऐश्वर्य आदि कोई भी दिया। इसी प्रकार क्षण-क्षण नष्ट होने तो ऐसी वस्तु नहीं जो टिकी रह सके। फिर किस पर वाले आपके इस रूप में जो घमंड करना और की बात तो छोडो विधाजान,तप आदि अन्तर आया उसको हमारी भी तो घमंड करने योग्य नहीं। विद्रष्टि ने देख लिया परन्तु आपकी साधारण । द्रष्टि नहीं देख पाई। G हैं।क्या कहा? क्या मेरा स्पक्षण-क्षण विनाशकी और बढ़ रहा है? सम गया, अब समझ गया। उत्तम मार्दव धर्मका वर्णन करते हुए पं.धानतराय जी ने भी तो यही कहा है-"जितव्य जोवन धन गुमान,कहां करे जल बुदबुदा और सब ने देखा सनत्कुमार चक्रवर्ति बन गये नन दिगम्बर साधु 2017 us 53 SATNA

Loading...

Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36