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जैन चित्रकथा महाराज आपके छोटे भाई ने यह रस की तूम्बी भेजी है। इस रस से तांबा सोना बन जाता है। इसे ग्रहण किजिये और अपनी सब, दरिद्रता मिटा लीजिये!
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भैया! मुझे इसकी
जरूरत ही नहीं है लाये हो तो पटक दो इसे इन पत्थरो पर!
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| गुरुदेव आपके भैया की हालत ठीक नहीं है। भैया मैंने तुम्हारे पास एक रस भेजा था जो तुमने पत्थरो पर फिकवा उनके पास तो लंगोटी तक भी नहीं और
दिया खैर मैं खाने की न पूछिये। मैं उनके पास 3 दिन रहा। 'तुम तो कहते थे इससे सोना बनता है। कहां बना बाकी बचा मुझे भी भूखे रहना पड़ा। मुझे तो लगता है सोना?क्या घर इसीलिये छोडा था? क्या वैराग्य रस लेकर मैं
उनका दिमाग भी|| इसीलिये लिया था? क्या कमी थी सोने की घर |स्वयं आपकी
खराब हो गया है। है! क्या गजब किया
सेवा में आया मैं और हां यदी सोना चाहिये तोलो कितना सोना उन्होने पत्थरों पर फिकवा तूम्बी के रसको ।।चाहिये?
है! ले लोन (पत्थरो पर फिकदिया वह अमूल्य रस अब
इसे सोना वा दिया मैं
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बना कर. क्या करूं मैया का दुखदेखा नहीं जाता बाकी बचा रस मैं
कितना भोला है क्या करता
सुरखी हो
यह इस रस को भी इस स्वयं ले कर उनके पास
लो।
शिला पर फेक देता हूं। जाता हूँ।
(REROIAS
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