Book Title: Dharm Ke Dash Lakshan
Author(s): Moolchand Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 31
________________ धर्म के लक्षण यह तो तुम जानो देवी पर यदि ऐसा होगया तो आने पर||जब मैने उन्हें कहा वह बार बार मरुभूति उनकी क्या हालत होगी। उन्हें कि मरूभति तो बाहर मरूभूति पुकार रहे है। कहीं अपने बड़े भाई से कितना | गया हुआ है! तो उन्होने ऐसा न हो जाये कि मरुभूति अधिक प्रेम है। कहा अगर मरूभूति के आने से पहले उनके प्राण नहीं है तो उसकी पखेरु उड़ जायें। पत्नी वसुन्धरी से ही कह दो किवह जरा मुझे देख जायें। अब तो मैं संसार से विदा और क्या हो रहा हूं! कहा उन्होंने? क्या ऐसा कहा उन्होने ? अगर मैं नहीं जाती तो वे आ कर मुझ पर बड़े क्रोधित होंगे और कहेंगे कि मैं नहीं था तो कम से कम तुम्हें तो भैया की खबर लेने जाना चाहिये था। 10000 भैया चलना तो मुझे जरूर चाहिये। परन्तु उनसे पूछे बिना घर से बाहर जाना) क्या ठीक रहेगा। ००००० परन्तु अगर उसने दम तोड़ दिया तो जानती हो मरूभूति कितना बुरा भला कहेगा तुम्हें। आगे तुम जानो। बात तो ये ठीक कह रहे है। और मैं किसी और को तो देरंकने नहीं जा रही है।वह मेरे जेठ ही तो है। और जेठ होते है। पिता तुल्य! अच्छा भाई चलो। 29

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