Book Title: Dharm Ke Dash Lakshan
Author(s): Moolchand Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 35
________________ सम्पादकीय धर्म के दश लक्षण आधुनिक युग में भौतिकता की चकाचौंध से विपरीत हो गई है दृष्टि और मति जिनकी। - ऐसे अभागे प्राणी पंचेन्द्रियों के विषयों में आकण्ट डूबे हुए आत्मोत्थान के मार्ग से दूर हो चुके । है। उन्हें अपना हित धर्म से नहीं धन में दिखता है। धन को सब कुछ मान बैठे है, इसलिए - धर्म को तिलांजलि दे दी है। . पयूषण पर्व एक अदभूत पर्व है। इसका उद्देश्य व्यक्ति को तनाव के कारणों से मुक्ति दिलाना। तनाव के कारण है मनुष्य के अपने विकार । इन विकारों का जन्म अधर्माचरण से होता है, अधर्म से बचते हुए धर्म का अनुपालन करनेवाला जीव ही निर्विकार बन सकता है यदि व्यक्ति के जीवन में से - क्रोध, मान, माया, लोभ असत्य आदि विकार दूर हो जावे तो जीव को सुख शान्ति की प्राप्ति होती है। उत्तम क्षमादि भाव वस्तुतः आत्मा के गुण है तथा प्राणी मात्र में पाये जाते है। धर्म का सेवन हम | विषयों का विमोचन किए बिना करेगें तो स्वाद नहीं आयेगा। धर्म की बात भी जितनी बार सुनेंगे तो कभी न कभी उस धर्म की हमारे उपयोग में स्थिरता होगी। इस कौमिक्स में धर्म के दश लक्षणों को सरलता के साथ प्रस्तुत किया गया है। धर्म और जीवन का गहरा सम्बन्ध है जिस जीव के जीवन में धर्म नहीं वह शव के समान है। जो जीव धर्म को सही रूप में धारण करता है वह शिव बन जाता है, आज की सबसे विकट और जटिल समस्या यही है कि व्यक्ति विविध रूपों में धर्म का नाम लेता है। कई प्रकार की धार्मिक क्रियायें - भी करता है पर फिर भी धर्म उनके जीवन में उतर नहीं पाता। इसका प्रमुख कारण यही है। कि वह धर्म के अनुकूल अपनी पात्रता विकसित नहीं कर पाता। धर्म को जीवन में उतारने के ! लिए उसके अनुरूप पात्रता विकसित करना आवश्यक है। और यह पात्रता जीवन की सत्यता : कोमलता और सरलता से आती है। ब्र. धर्मचंद जैन शास्त्री प्रतिष्ठाचार्य

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