Book Title: Dharm Ke Dash Lakshan
Author(s): Moolchand Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 25
________________ धर्म के लक्षण भैया यह लो हमारे दोनों के पैसे और ले चलो उस पार! "Ki आइये सेठ जी। आइये पंडित जी। बैठिये नाव पर अभीले चलता हूं उस पार! उस पार k/महाराज। आप तो कहा करते अब समझा पंडित जी भैया वास्तव में तो हमें राग, द्वेष आदि पहंच कर! है कि त्याग से संसार समुद्र को | वास्तव में त्याग बिना || विकारों का त्याग करना चाहिये जिसे पूर्ण भी पार किया जा सकता है। कल्या नहीं। जरा त्याग|| रूप से तो गृह त्यागी दिगम्बर मुनि ही कर P आप से तो यह छोटी सी नदी के विषय में मुझे विस्तृत सकते हैं। परन्तु व्यवहार में दान को त्याग भी पार नहीं हो सकी। रूप से समझाइये तो कहते है। सही। का(भैया तुम भूलते हो। नदी जो पार हुई वह त्याग से ही तो हई है।अगर तुम पैसे जैब से निकालकर नाविक को नदेते। यानि अगर तुम पैसो का त्याग न करते तो नदी कैसे पार होती TM TIME FILAL

Loading...

Page Navigation
1 ... 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36