Book Title: Dharm Ke Dash Lakshan
Author(s): Moolchand Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 24
________________ उत्तम त्याग धर्म एक दिन वह पंडित जी नदी किनारे पहुंचे और... इतने में आ गए सेठ जी... अजी पंडित जी (यहां क्यों खडे हो ? क्या बात है ? जैन चित्रकथा भव्यों ! उत्तम त्याग धर्म के पालन से संसार समुद्र भी पार किया जा सकता है। तभी तो शास्त्रो में त्याग धर्म की अपार महिमा गाई है! महाराज में गरीब मल्लाह हूं। अगर में फोकट में ही लोगों को पार पहुंचाता रहूं तो मेरी गृहस्थी कैसे चलेगी ? महाराज ! अगर हम रुपये पैसे का त्याग कर दें तो एक दिन भी काम न चले त्याग कैसे किया जा सकता है! 22 17 59 CC भैया । हमे नदी के उस पार जाना है। पैसे हमारे पास हैं नहीं। अगर तुम हमे उस पार पहुंचा दो तो बड़ी कृपा होगी ! सेठ जी ! बात तो कुछ भी नहीं। हमें नदीं के उस पार जाना है! यह नाविक बिना पैसे लिये नाव में बिठाता ही नहीं। और पैसे हमारे पास हैं नहीं। हम सोच रहे हैं उस पार न सही चलो इसी पार सामायिक कर लेगें !

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