Book Title: Dharm Ke Dash Lakshan
Author(s): Moolchand Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 10
________________ जैन चित्रकथा और मृदुमति बन गये दिगम्बर मुनि एक दिन आहार के लिये जा रहे थे.. Phalombias CBARom 2000 अहो,हमारे नगर का अहोभाग्य जो ऐसे तपस्वी मुनिराज चारणऋद्धि (धारी मुनिराज आहार के लियेहमारे नगर में आ रहे हैं। धन्य है ये ऋषिराज देखो चार माह से उपवास से थे। वह जोसामने पर्वत है, वहीं पर ठहरे थे। नगर में अब तक ये आये ही नहीं,आज आहार के लिये उठे है। वह बडा भागी होगा जिसके यहां इनका आहार. होगा। ये लोग किसकी प्रशंसा कर रहे हैं। न तो मैं धारणमृद्दीधारी है। और न मैं चार माह का उपवासी। हां सुना था कि पास के पर्वत पर ऐसे एक ऋषिराज ने चातुर्मास किया था। हो सकता है वे यहां से चले गये हों। परन्तु ये लोग तो मुझे Vवही ऋषिराज समझ कर मेरी इतनी प्रशंसा कर रहे हैं। मैं चुप रह जाऊं तो क्या हर्ज है। श्री

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