Book Title: Dharm Ke Dash Lakshan
Author(s): Moolchand Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 16
________________ अरी दासी जरा पुरोहित जी के घर जा कर उनकी | पत्नी को यह अंगूठी व 'जनेऊ दिखाकर कहना कि पुरोहित जी ने वह 5 रत्न मंगाये हैं! जो एक सेठ उनके यहां धरोहर रख गया था। जैन चित्रकथा अरे लोगों जरा मेरी भी सुन लो ! मैं लुट गया। बरबाद हो गया। राजपुरोहित सत्यघोष ने मेरे साथ धोखा किया। वह मेरे पांच रत्न वापिस नहीं लौटा रहा है! है कोई जो मेरा न्याय करे! अभी लाई महारानी जी ! प्राणनाथ सुनो तो यह कौन है जो | कह रहा है। कि सत्यघोष उसके पांच रत्न नहीं लौटा रहा है! AML रानी के बहुत आग्रह पर राजा ने उस पागल का न्याय रानी को सौंप दिया। रानी ने पुरोहित को चौपड़ खेलने के लिये आमन्त्रित किया और चौपड़ में पुरोहित जी से उनकी अंगूठी व जनेऊ जीत लिये। फिर.... प्रिये आराम से सो जाओ कोई पागल होगा! भला राजपुरोहित जी ऐसा कर सकते है। In 14 दरबार लगा है.... हे वणिक महोदय ये बहुत से रत्न रखे हैं। क्या इनमें से तुम अपने 5 रत्न पहिचान सकते हो ? हां हां राजन क्यों नहीं ! देखिये कृपासिंधु ये है मेरे पांच रत्न! महाराज मुझे क्षमा कर दिजिये! नहीं नहीं राजन इसने धौर अपराध किया है! विश् वासघात - बहुत बड़ा पाप है। इन्हें तो काला मुंह करके गधे पर चढ़ा कर देश निकाला दीजिये!

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