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महाराज मेरी तीव्र इच्छा है कि आज आप मेरे यहाँही भोजन करल। तो मेरा चौका पवित्र हो जाये।
धर्म के लक्षण (घबराइये नहीं पंडित जी। यह लीजिये 100 रुपये। यदि मेरे यहाँ ठहरने से आपको कोई पाप लगे तो
प्रायश्चित कर क्या बिगड
लेना। अच्छा !
जायेगा इसके हम ठहर यहां ठहरने से। और जाते है। 100 रुपये भी तो
मिल रहे है।
छिः छिः क्या कहा? मैं और तुम्हारे यहां भोजन का क्या तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है।
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है तो यह मेरे धर्म के विरूद्ध। परन्तु तुम्हारी भक्ति देखकर चलो मैं
ऐसा कर लूंगा।
भला अपने हाथ से भोजन बना कर रखा लेने मे हर्ज ही क्या है और 200 रूपये की रकम कोई थोडी भी तो नहीं है।
कुद्ध न हुजिये पंडित जी में । सामान मंगाये देती हूं। आप स्वयं भोजन बना कर रखा लीजिये और प्रायश्चित के लिये यह लीजिये 200 रूपये।
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