________________ धाम्म- ख्यातं / मा महीशो ग्रहीदमुं // इति स्वसद्मनि धनः / कोशाध्यदं व्यधत्त तं // 20 // विनीतो मा नीतिमानेष / यदादिशति किंचन // तन्मान्यमितरैरेवं / सोऽन्वशात् खं परिबदं // 51 // सोऽपि दानेन मानेना-प्रीणात्परिजनं तथा // यथा सर्वोऽपि तदत्त-मेवादत्त दशावधि // 55 // धनश्रियो विशेषेण / तेनानुववृते मनः // अपि चेटोचितं कर्म / स्वयं तस्या विनिर्ममे // 53 // तस्याः प्रनोरिवादेशं / न ललंधे मनागपि // विदधेऽनिदधे तच्च / यत्तस्या एव रोचते // 14 // एवं स्व| मेला था विनीतने जो राजा न लेश ले तो ठीक, एम विचारीने धनश्रेष्टीए तेने पोताना घरमां भंडारी बनाव्यो. // 20 // या नीतिवान विनीत जे कई हुकम करे ते बीजाए मानवो, एम ते. णे पोताना परिखारने फरमाव्यु. // 51 // पछी ते विनीत पण दान धने मानथी ते परिवारने एवो तो खुश करवा लाग्यो के जेथी तेज सघळा क दोरासुधी तेणेज थापेर्बु लेवा लाग्या. // 5 // वळी ते विनीत पण धनश्रीना मनने विशेष प्रकारे अनुसखा लाग्यो, तथा तेणीनुं दासोचित कार्य पण पोते करवा लाग्यो. // 53 // वळी शेठना हुकमनीपेठे तेणीना हकमनो जरा पल अनादर करतो नहि, तथा तेणीनेज जे गले तिज ले करतो तशा कहेतो हतो. P.P.AC.Gunratnasura M.S. Jun Gun Aaradhak Trust