________________ धम्मि, सशोणितं देह-मस्थिकूटमयं दधत् // 27 // उर्दशादयिताश्लिष्टो / उनिदस्येव सेवकः // रंकोमा ऽयं को दहा मातः / खसार्थे गृहितस्त्वया // 60 // मन्ये नृतगृहात्तस्मा-भृतोऽयं कोऽपि निर्गतः | // यदीहरभीषणाकारो / मनुष्यः कापि नेदितः // 61 // यदि वा न हि नृतोऽयं / न पिशाचो | न सदसः // किंतु मूर्तमिदं पापं / मम लमं पुराकृतं // 6 // ददृशे यो मया पूर्व / नेत्रांनोज को, लांबी डोकवाळो, मुबळो, निर्बल, सुपमाजेवा नखपगवाळो, / / 27 // कुधाथी खाली जदरवा. लो, मुबळी केम्परथी खसी जतां वस्त्रवाळो, मांस अने रुधिरविनाना फक्त हामपिंजरजेवां शरीरने धारण करनारो. // एए // दरिद्रतारूपी स्त्रीथी आलिंगित थयेलो, तथा दुकाळना सेवकसरखो ए. वो कयो माणस तें पापणी साथे लीधो ? // 60 // हुं तो धारु बुं के ते नृतघरमांथीया कोश्क नृतज निकली आव्यो बे, केमके धावा नयंकर आकारखाळो माणस तो क्यांय पण जोवा. मां श्राव्यो नथी. // 61 // अथवा था भूत पिशाच के रादास नथी, परंतु या तो पूर्वे करेलु मा. रुं पापज मूर्तिवंत थश्ने मारी पाबळ लागेछु . // 6 // मारां नेत्रोरूपी कमलोने सूर्यसरखो जे घम्मिल पूर्व में जोयो बे, ते तो था नथीज, था तो हे माता! खरेखर मारां नेत्रोरूपी कमलोने P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust