Book Title: Dhamil Charitra Bhashantar Part 03
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 200
________________ धमि धुना त्वं धृतस्नेह-बंधनश्चलितः सखे // 31 // हृद्य यद्यनुजानासि / तत्प्रतिष्टे त्वया सह // तेने. त्यालापितः श्रेष्टी / प्राह स प्रहसन्मुखः // 32 // सखे उग्धे सिताखळं / घृतपूरांतरे घृतं // कर नमध्ये कर्पूर-मेलाचूर्ण जलांतरे // 33 // यथा तथा प्रतिष्टासौ / मयि तुष्टयै त्वदागमः // वि. 547| देशोऽपि स्वदेशः स्या-द्यन्मे संनिहिते त्वयि.॥ 34 // एवं समुदत्तेना-ज्यनुज्ञातसहागमः | // विप्रः प्रयाणसजोऽन-दढो मैत्र्यमकृत्रिमं // 35 // प्रमाणयन्निमित्ताद्य / पश्यन् शकुनसौष्टवं पासे श्रावी बोल्यो के, // 30 // हे मित्र! चेक जन्मथी श्रापण बन्ने परस्पर वियोग पाम्या नथी, परंतु स्नेहबंधनथी बंधायेलो तुं बाजे चालतो थाय ने. // 31 // माटे जो तुं कहे तो हुँ पण ता. रीसाथे चावू, एवी रीते तेणे कह्याथी शेठ पण हसते चहेरे बोल्या के, // 35 // हे मित्र! जेम दूधमां साकर, घेवरमां घी, करंजमां कपूर, तथा जलमां जेम एलचीन चूर्ण, // 33 // तेम मारी मुसाफरीमां तारं साथे यावq मने हर्ष करनारंबे, केमके जो तुं मारी साथे होश तो परदेश पण मने स्वदेशजेवोज थर पडशे. // 34 // एवी रीते समुद्रदत्ते साथे थाववानी अनुझा देवाथी ते ब्राह्मण पण प्रयाणमाटे तैयार थयो, अहो! मित्रा तो खानाविकज होय ! // 35 // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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