Book Title: Dhamil Charitra Bhashantar Part 03
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ धम्म- // प्रयाणं विधिवच्चक्रे / समुद्रः शोभने दिने // 36 // पद्ममत्र श्रियः सद्म / नालस्य प्रसरं ददत् / // याप्रयाणात्ततोऽत्याजि / तेनाप्यालस्यवश्यता // 37 // अश्रीकमेव स्वविति / श्रीयुग जागर्ति वारिज // स वर्त्मनि धनश्रीक / श्यन्नित्यजागरः // 30 // एवं मार्गमतिकाम-नविजिनः प्र 547 | याणकैः // ययौ यियासितं स्थानं / श्रेष्टिमः सुहृदा सह // 35 // तत्र वाणिज्यवैयध्याद् / व्रतो पजी समुद्रदत्ते निमित्तयादिकने प्रमाणरूप गणीने तथा शुभ शकुन जोश्ने शुग दिवसे विधिपू. र्वक प्रयाण कयु. / / 36 / नालनो विस्तार अापतुं कमल लदगीना स्थानरूप थाय बे, एम वि. चारीने तेणे पण प्रयाणना दिवसथी मांझीने बालसना वशपणानो त्याग कर्यो. // 37 // श्री. क एटले विकखरतारूपी शोजाविनानुज कमल ने एटले बीमार जाय , परंतु श्रीयुक एटले विकस्वर थयेबु कमल जागे के एट्ले प्रफुल्लित थाय , एम जाणीने घणी लक्ष्मीवाळो ते समद्रदत्त पण मार्गमां हमेशां जागतो रहेतो हतो. // 30 // एवी रीते अविजिन्न प्रयाणथी मार्ग नं. गीने ते श्रेष्टिपुत्र मित्रसहित मनोवांछित स्थाने पहोंच्यो. // 35 // जेम देवलोकमां गयेलो प्राणी सुखथी तेम त्यां व्यापारमां लीन थवाथी तेणे जता एवा घणा दिवसो पण जाण्या नहि. / P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Ummerocineleuote

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