Book Title: Dhamil Charitra Bhashantar Part 03
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ धम्मिः अपि न जझिरे // यांसों दिवसास्तेन / स्वःप्राप्तेन सुखादिव // 40 // निर्व्यापारः पुनर्विप्रः / सः / साष्टदिवसात्यये // स्मरनिज परिजनं / विजने श्रेष्टिनं जगौ / / 41 // स्वस्थानस्य विमुक्तस्य / ब वुर्बहवो दिनाः // अतो ममाक्षिणी जाते / स्वजनालोकनाकुले // 4 // अंत्र मित्र स्खलोनेन 54 / घटते ते चिरं स्थितिः // दिवसे दिवसे गब-नस्ति मे वत्सरः पुनः // 43 // तन्मामादिश ये नाहं / संगने स्वजनैर्निजैः // ध्यातर्विध्यः करीवात् / न स्थाः दणमुत्सहे / / 44 // श्रेष्टयन्यधा| // 40 // परंतु त्यां कई पण व्यापारविना नवरो बेठेलो ते ब्राह्मण सात बाठ दिवसो गयावाद पोतानुं कुटुंब याद थाववाथी एकांते शेठने कहेवा लाग्यो के, // 41 // मने मारूं घर गेडये घ. णा दिवसो थया ने, माटे हवे तो मारी थांखो मारा कुटुंबने जोवाने यातुर थयेली . // 4 // वळी हे मित्र! धनना लोनथी तारे तो यही घणा वखतसुधी रहेवार्नु लागे , परंतु मारे तो दिवसे दिवसे एक वर्ष जवाजेवू थ पडयं . // 43 // माटे मने तुं रजा आप? के जेथी मारा कुटंबने हं जश् मधं, केमके याद थावेल ने विंध्याचल जेने एवा हाथीनीपेठे हुँ यहीं कणवार पण रहेवाने खुशी नथी. // 4 // त्यारे शेठ बोल्या के हे मित्र! तुं था पराया माणसनीपेते P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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