Book Title: Dhamil Charitra Bhashantar Part 03
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 185
________________ धम्मि- स्म / स तथा सिंहविक्रमः // 6 // अकस्मात्प्राप्तपारी-शंकया स रजस्वलः॥ यथा नाजीगण / नश्यन् / ग वादिकं हि सः // 63 // दुष्टानप्युरगद्दीपि-मातंगमहिषानसौ // न जघान सम र्थोऽपि / जैनाः प्रायेण सहयाः // 6 // ... | ततः स पुरतो गह-नतुबायुधशालिनः // चौरानापततोऽनेका-निगाल्यैवं व्यंगावयत् // | // 65 // किमुबिता जुवं नित्वा / किं वा व्योम्नच्युता यमी // किं वा संमूर्बिमा ह्येते / तातो | धेला घोमा पण नंचा कानवाल थया. // 61 // हवे सिंहसरखा पराक्रमवाळा ते धम्मिले रथप. रथी नतरी ते पाडानी पाउल पमीने एवो तो सिंहनाद कयों के, // 6 // अकस्मात श्रावेला सिंहनी शंकाथी ते इष्ट पाडो एवी रीते तो जाग्यो के नाशतांथकां तेणे खामा तथा नमरीया. यादिकनी पण दरकार करी नहि. // 63 // उष्ट एवा पण सर्प, वाघ, हाथी तथा पामाने पोते समर्थ बतां पण तेणे मार्या नहि, केमके जैन लोको पायें करीने दयालु होय जे. // 6 // . : पनी ते पागल चालतोथको मोटा हथियारोथी शोजता अनेक चोरोने सामा आवता जो. इने विचारखा लाग्यो के, // 65 // शुं या पृथ्वीने नेदीने निकल्या ने? अयवा आकाशमाथी P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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