Book Title: Dhamil Charitra Bhashantar Part 03
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 192
________________ सार्थ 530 धम्मि- मं पूरयता विश्व-कामितान्यमितौजसा // निराशो नवरं तेन / तेने स्तेनासतीगणः॥ 55 // 3 // न्यः सागरदत्तोऽजू-तत्र श्रीद श्व श्रिया // संख्यानं तानवं निन्ये / पराय॑मपि यनैः / / ए६:॥ विनयश्रीरिति ख्याता / नयश्रीखि देहिनी // स्थेयसी मेरुचूलेव / प्रेयसी तस्य चालवत् // ए॥ | समुह व गंजीरो / न पुनर्जमिमालयः // समुद्रदत्त श्त्यासी–त्तयोः पुत्रः पवित्रधीः // 7 // शशिनः स्पर्धया वर्ध-मानः प्राप्तोऽखिलाः कलाः // वाप पुष्पचापस्य / सवयः स वयः क्रमात् देवलोकमां जेम इंद्र तेम त्यां अरिमर्दन नामे राजा हतो, के जेणे हुशियारीथी शत्रुना लश्करनो नाश करीने प्रजाने जाहोजलालीवाळी करी हती. // ए४ // ते महाप्रतापी राजाए जगतना मनोवांगितो सारी रीते संपूर्ण कर्या हता, परंतु एटर्बु विशेष के तेणे चोरो तथा कुलया स्त्रीनना समुहने निराश कर्या हताः // 5 // त्यां लक्ष्मीथी कुबेरसरखो सागरदत्त नामे शेव हतो, के जेना धने परार्धनी संख्याने पण सूक्ष्म करी नाखी हती. / / ए६ // तेने देहधारी नयलक्ष्मीसरखी तथा मेरुनी शिखरपेठे स्थिर एवी विनयश्री नामनी प्रख्यात स्त्री हती. // ए.॥ .समुज्नीपते | गंजीर, परंतु जडताना स्थान विनानो एवो तेजने पवित्र बुध्विाने समुदत्त नामे पुत्र हतो.॥ P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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