Book Title: Dhamil Charitra Bhashantar Part 03
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ सार्थ धम्मि- मम // 17 // सुकरौ दाननोगौ स्तो / जनकोपार्जितश्रियः // न तत्र गर्व कुर्वति / स्वबाहुबलशाः / लिनः // 17 // विदेशमपि गत्वा त-दर्जयिष्याम्यहं धनं // गृहहट्टगतायात-भवेदाजीविकैव य त् // 15 // एवं स मांसलोत्साहो / देशांतरयियासया // प्रियां शीलवती शील-शालिनीमन्व५४४ जिझपत // 20 // ततः शीलवती प्रोचे / दरदश्रुविलोचना // नाथ त्वदिरहं सोढुं / न समर्था | स्मि सर्वथा // 21 // वरं वह्निरसंदेहं / देहं दहति यो पुतं // नित्यमंतवलंबन्नो / न पुनर्विरपरंतु पोताना भुजाबलथी शोलता पुरुषो ते माटे गर्व करता नथी. // 17 / / माटे परदेशमां प. णा जश्ने हं धन उपार्जन करीश, केमके घर घने दुकानवच्चे जवा भाववाथी तो मात्र बाजी. विकाज चाले जे. // 10 // एवी रीते ते अत्यंत उत्साही थश्ने देशांतर जवानी श्वाथी पोता. नी शीलथी शोजिती शीलवती नामनी स्त्रीनी सलाह लेवा लाग्यो. // 20 // त्यारे शीलवती यांखोमांथीयांसु पामतीथकी बोली के, हे नाथ! हुं आपनो वियोग सहन करवाने सर्वथा अ. समर्थ बु. // 21 // अमि सारो के जे संशयविना शरीरने जलदी बाळी नाखे, परंत हमेशां . | तःकरणमां गुप्त रीते बळतो एवो विरहरूपी अनि सारो नहि. // 25 // चेक विवाहना दिवसथी P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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