Book Title: Dhamil Charitra Bhashantar Part 03
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ धाग्म-। निषेधितोऽपि पित्रैव-मुपयलेयं चेदिमां // निषिधकारी गेहेऽह-मुपतिष्टेयं तत्कथं // 27 // परं / | चंपापुरे मात-मातुलोऽस्ति ममातुलः // तत्तत्र परिणीयेमां / तिष्टामि यदि मन्यसे // 30 // म. याप्यूचे महाभाग / साधु साधु मतिस्तव // का न्यूनता विदेशेऽपि / ययूढा राजकन्यका // 31 // 525 राजकन्या समानेया / सायं नृतगृहे त्वया // इति प्रदत्तसंकेतः / स जगामान्यतस्ततः // 3 // प्रायेण वणिजि स्नेहो / राजपुत्र्यास्त्रपाकरः // इति व्यतिकरं पुत्र्या / नाहं नृपमजिपं // 33 // स्वीकार ? // 2 // एवी रीते पिताए निषेध्या छतां पण जो हुँ या राजपुत्रीने पाणुं तो तेमनी याज्ञानो अनादर करनारो हुँ घरमां केम रही शकुं? // 27 / / परंतु हे माताजी! मारो एक अ. नुपम मामो चंपा नगरीमां रहे , माटे जो तुं कहे तो थाने परणीने त्यां रहुं. // 30 // त्यारे हं पण बोली के हे महानागी! तने ठीक बुधि सूजी, केमके ज्यारे ते राजकन्या परणी. त्यारे परदेशमां पण तने शुं जंगश रहेवानी ने? // 31 // हवे संध्याकाळे तारे नृतघरमां था राजकन्याने लाववी, एम संकेत देश्ने ते त्यांथी अन्य जगोए चाव्यो गयो. // 35 // प्रायें करीने व. |णिकपते राजपुत्रीनो स्नेह लज्जा करनारो , एवो था मारी पुत्रीनो वृत्तांत में राजाने जणान्यो P.P.AC.Gunratnasuri.M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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