Book Title: Dhamil Charitra Bhashantar Part 03
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 182
________________ धम्मिः प्रविवेश सः // 4 // युग्मं // तत्रायमनिसर्पतं / सर्प दर्पमिवांगिनं // नत्सारिणीनिर्विद्यानिः / दरे रज्जुमिव व्यधात // 45 // अग्रतोऽसौ गतोऽमान-मानुषामिषलोलुपं // मूर्त्यतरमिव प्रेत पतेा निरदत // 20 // नतकेसरसटं / तं व्यात्तवदनोदरं // मंत्रैः स मृगतां निन्ये / सु. ५२ए| खे क्लेशं करोति कः // 51 // पुरश्चरनिरैदिष्ट / प्रवहन्मदनिर्भरं // गजं स जंगमं शैल-मिव बरोना श्रामबरखाला, जयंकर मोटा घोरखोदांवाला, अनेक हाथीनथी व्याकुल थयेला, // // निर्दय सोनी श्रेणिथी श्याम थयेला पृथ्वीतलवाळा तथा घणा नृतोना संचारवान एवा वनमां ते दाखल थयो. // 40 // त्यां देहधारी अहंकारसरखा सामे थता सर्पने नत्सारिणी विद्याथी दो. रीनीपेठे तेणे दूर फेंकी दीघो. // 4 // पनी अगामी चालतां तेणे घणा मनुष्योना मांसना लोलुपी तथा यमनी जाणे बीजी मूर्तिज होय नहि एवा एक वाघने तेणे जोयो. // 50 // . ची करेली केशवाळीवाळा तथा विस्तारेल मुखवाळा एवा ते वाघने तेणे मंत्रोयीज हरिणसरखो बनावी दीधो, केमके सुखसाध्य कार्यमाटे वळी कोण क्लेश जठावे ? // 51 // पनी भागळ चालतां तेणे करता मदना समुहवाळा, जंगम पर्वतसरखा अने मोटा दांतोवाळा एक हाथीमे जो. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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