Book Title: Descriptive Catalogue Of Manuscripts Vol 26
Author(s): P K Gode
Publisher: Bhandarkar Oriental Research Institute
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Upanigads
[952
Ends - fol. 9a .
प्रारब्धकर्मजनितफलावधिलोकाननुग्रहाति तावत्तिष्टते तथा प्रध्वस्ताखिलमोहापि मोहकार्य तथात्मचेत् कुर्वलेवावतिष्ठते । यद्यथा ज्ञात्वा प्यसप्पंसपोत्यं यथाकंपन मुंचति विवस्थाखिलमोहोपि मोहकार्य तथात्मवित् । इति श्रीमत्शंकराचार्यविरचितायां वज्रशूची-उपनिषत्सुबोधिन्यां समाप्तः शुभं भवत् संवत् १७५५ वर्षे फाल्गुनवदि ७ शनिवासरे लिखितं ।।
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वज्रसूच्युपनिषद्
Vajrasūcyupanişad No. 952
1887-91 Size --9 in. by47 in. Extent - 6 leaves; 10 lines to a page; 28 letters to a line. Description - Country paper; Devanāgari characters; handwriting
clear, legible and uniform; borders ruled in double black lines with a thick red line between them; folios numbered
in right hand margins; complete. Age - Not very old. Author - Samkarācārya. Begins — fol. 10
श्रीगणेशाय नमः वज्रशुचिं प्रवक्ष्यामि शास्त्रमज्ञानभेदनं ॥
दूषणं ज्ञानहीनानां भूषणं ज्ञानचक्षुषां ॥ १॥ etc. Ends-fol.6a
ज्ञात्वाप्यसोत्थं यथा कंपंन मुंचति ॥ प्रध्वस्थाखिलमोहोपि लोककार्यस्तथात्मवित् ॥ इत्यथर्ववेदे वज्रशूचिकोपनिषत्समात ॥ शुभं भवतु ॥ Then follow some lines beginning with श्रीगणेशाय नमः ॐ प्रत्यगानंदब्रह्मपुरूष प्रणवस्वरुपमकार उकारो मकार इति etc.
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