Book Title: Descriptive Catalogue Of Manuscripts Vol 26
Author(s): P K Gode
Publisher: Bhandarkar Oriental Research Institute

Previous | Next

Page 221
________________ 208 Upanigads 1992 Ends-fol. 20 एकाक्षरं प्रदातारं यो गुरुमाभिनंदति । तस्य श्रुतं तपोशानं स ... त्यामघटांबुवत् । यस्य देवे पराभक्तिर्यथा देवे तथा गुरौ । स ब्रह्मवित्परं प्रेयादिति वेदानुशासनमित्युपनिषत् ॥ ओं श्रीमद्विपंणणमस्तु ॥ शाठयायनिग्योपनिषत्समाप्ता॥ श्री॥ शारीरकोपनिषद् Śārirakopanişad 487 (62) No. 992 1882-83 Size -93 in. by 58 in. Extent - 10 to 2a leaves; 15 lines to a page ; 30 letters to a line. Description – See No. 487 (1)/1882-83 : Isavasyopanisad (Vol. I, Pt. II, p. 88). Begins -fol. 10 श्रीमहागणपतये नमः॥ श्रीमद्विश्वाधिष्ठानपरमहंससद्गुरुराचंद्राय नमः ॥ ओं सह नाववत्विति शांतिः॥ अथातः पृथिव्यादिमहाभूतानां समवायं शरीरं यत् कठिनं सा पृथिवीय. द्रवं तदापो यदुष्णं तत्तेजो यत् संचरति etc. Ends - fol. 2a श्रोत्रत्वक् चक्षुर्जिव्हा घ्राणं चैव तु पंचमं । पायूपस्थौ करौ पादौ वाक् चैव दशभिमता । शद्वस्पर्शश्च रूपं च रसो गंधस्तथैव च। प्रयोविंशतिरेतानि तत्वानि प्रकृतानि तु। चतुर्विशतिरव्यक्तं प्रधानं पुरुषः पर इत्युपनिषत् ॥ ओं इति श्रीमद्विश्वाधिष्ठानपरमहंससद्गुरूरामचंद्रार्पणमस्तु । शारीरकोपनिषसमाप्ता ॥ श्री॥ श्री॥ - - -

Loading...

Page Navigation
1 ... 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274