Book Title: Descriptive Catalogue Of Manuscripts Vol 19
Author(s): Hiralal Rasikdas Kapadia
Publisher: Bhandarkar Oriental Research Institute

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Page 197
________________ 184 Begins - fol. 16 Jaina Literature and Philosophy ॥ ए ६० ॥ श्रीवीतरागाय नमः ॥ धर्माजन्म कुले शरीरपटुता सौभाग्यमायुर्बलं धर्मेणैव भवंति निर्मलयशौ विद्यार्थसंपत्तयः कांताराच (च) महाभयाच्च सततं धर्म परीत्रायते धर्मः सम्यगुपासितो भवति ही स्वर्गापवर्गप्रदः १ अत्र सदयवत्सकथा etc. as in No. 788 Ends – fol. 240 जीवरक्षादिवतपालनेन वैरी वाराजेयः पात्रदानप्रभावात् राज्यसमृद्धिदेवतासानिध्यादिम हितवाऽभूत् इत्यादि श्रुत्वा पूर्वभवससस्मरत् विशेषधर्माचरणेन स्वर्गप्राप्तिः क्रमेण मोक्षोवाप्तीश्च भविष्यति श्रीरत्नशेखरगुरुप्रवरप्रासादात् । हर्षादिवर्द्धन गणिः सुरसैकपात्रं च कथां सदयवत्सकुमार सत्कां सत्पात्रदान विमलाभयदानवाच्यां १ इति श्री सुपात्रमभयदांनविषये सदयवत्सकुमारकथा ॥ संपूर्णः सं १९०९ ना आसो वदि ११ नें वार रवे उई लक्ष्युं छेः श्री सुरत बिंदरे ' लषीतं पं राजवीजे पं उत्तमस्त्क ॥ N, B-For further particulars see No. 787. [ 790 सदयवत्सप्रबन्ध [ सदयवच्छप्रबन्ध ] No. 790 1 Size - 10 in. by 4g in. Sadayavatsaprabandha [ Sadayavacchaprabandha ] 414 1879-80 Extent - 32-1 folios; 11 lines to a page; 38 letters to a line. Description-Country paper thick, rough, tough and white: Jaina Devanagari characters with occasional Tas; big, quite legible, uniform and good hand-writing; borders ruled in two lines in black ink; red chalk used; foll. numbered in the right-hand margin; ikāra, mātrā of okāra and anusvāra

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