________________
196
Jaina Literature and Philosophy
1799
blank; numbers of foll. entered twice as usual; fol. 24th slightly torn; a corner of fol. 30th worn out; white paste used; complete; composed in Hindi in 11 Adhyāyas in various
metres. Age - Samvat 1840. Author - Yodharāja Godikā. Subject - Stories and precedents of various religious people to re-in
force the spirit of right faith. Begins -- fol. 10
ॐ नमः श्रीवीतरागाय नमः । मथ सम्यक्त्वकौमुदीभाषा साह योधराजगोदीका कृत लिष्यते। दोहा। परमपुरुष आनंदमय । चेतनरुप सुजांन ।
परमातमां । जगपरकासन भान ॥ १॥ etc. मरुदेवी मात अरु नाभिराजा पिताजा के
ऐसे आदिनाथजिनताके पद नमिहै I etc. Ends-fol. 450
दोहा। जिनबानी पूजी सही तातै सब सुष होय। कवितादूषणं नालगै । सुषथे पूरण होय । ४० ॥ चंद सूर पानी अवनि । जब लग अवर अकाम ।
मेरादिक जब लग भटल । तब लग जैन प्रकास ॥४१॥ इति श्री सम्यक्त्वकौमुदी साह जोधराज गोदीका विरचिते कथावर्णनो नाम एकादशोऽध्यायः। इति सम्यक्तकौमुदीग्रंथ संपूर्ण समाप्ताः ॥१॥ संवत् १८४० का वर्षे श्रावणमासे कृष्णपक्षे तिथौ २ भौमवासरे । लिखितं म्हात्मा जयदेव साकंभरिमध्येः॥ श्री
सम्यक्त्वकौमुदी
No. 799 Extent-fol. 2a to fol. 440. Description - This work begins abruptly,
Samyaktvakaumudi
252(b) 1871-72