Book Title: Descriptive Catalogue Of Manuscripts Vol 19
Author(s): Hiralal Rasikdas Kapadia
Publisher: Bhandarkar Oriental Research Institute

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Page 315
________________ Jaina Literature and Philosophy [885 'षरतर 'गन्ननायक परो । जंगम जुगपरधान । श्रीजिनसिंघसूरीसरू । नमीय इ सगुणनिधान ॥५॥ विनयवंत विद्यानिलो । गणि हरिनंदन गाइ । गुरु सुपसायइ गाइसुं । रंगह हरचंदराह ॥ ६ ॥ etc. Ends-fol. 500 गच्छराज जिनसिंघसूरि गुरु । श्रीहेममंदरसीस।...... जसवंतगणि कहह जयवंता हो । विद्यागुरु सुजगीस ॥ ६ गुण. भावसुं जेह भणइ गुणइ । सांभलइ जे सुषकंद। सिवसुष तेहनइ संपजइ । इम बोल दूहो जैन मुगट भाणंद ॥ ७ गुण. इति श्रीसत्तसाहसविषये राजाश्रीहरचंदचोपई समाता ॥ संपूर्णा ॥ दूहो॥ नाम ठाम गुरुदेव अरु । अष्यर जे लोपंति । ते नर जनमि जनमि लगइ 'कुंभी' नरगि पडंति ॥ सर्वगाथा ८०८॥ सहछह ॥ प्रक्षेपश्लोक ८१ छइ ।। सर्वढाल ३८ छइ ॥ प्रथाग्रंथ सर्वश्लोका १२५१ छह ॥ सुभं भवतुः कल्याणमस्तुः लेषकपाठकयोः॥ सं(व)त १७१७ वर्षे भाद्रपदमासे कृष्णपक्षे एकादशीतिथौ मंगलवासरे श्री 'मागरा'नगरमध्ये लिपीकृतं प्रतिरीयं ॥ विद्वज्जनाभिः सम्यक्तया वाचनीय । प्रवर्तनीयं च । संसोधनीयं प्रत्तिरिति ॥ ॥ दूहो॥ कृपावंत हिव कृपा करि॥ वाचेज्यो सुविचार । जिम प्ररयास ए माहरो । सफलो हुइ संसार ॥१॥ संपूर्ण ॥ Reference – It seems that this work is not noted in Jaina Gurjara Kavio. हरिश्चन्द्ररास Hariscandrarāsa 393 No. 885 1871-72 Size - 10g in. by 4g in. Extent - 38 folios, 15 lines to a page : 45 letters to a line.

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