Book Title: Descriptive Catalogue Of Manuscripts Vol 19
Author(s): Hiralal Rasikdas Kapadia
Publisher: Bhandarkar Oriental Research Institute

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Page 318
________________ 886] The Svetāmbara Works 305 Age - Old. Author - Dhanyavijaya, pupil of Anandavijaya (?) Subject - Story of Harisena and that of Srişena, They point out the importance of modesty. Begins - fol. 10॥ॐ॥ ॐनमः सिद्धं ॥ श्रीगौतमस्वामिने नमः॥ सरसतिपय प्रणमी सदा । जे जगि पूरे भास । जस प्रसादि कविजनवरा । बोलइ वागविलास ॥१॥ इम सरसति प्रणमी करी । समरी सिद्ध अनंत । चउवीसह तीर्थकरा । ते समरु भगवंत ॥२॥ पुंडरीक गोयम प्रमुख चउदसइ बावन्न । ते गणधर मंगलकरा । थुणी करुं सुभ मन ॥३॥ श्रीगुरुपदपंक(ज)वली । प्रणमुं मतिउल्हास । जस प्रसादई हुं करूं । हरिषेण-श्रीषेण-रास ॥ ४ ॥ etc. Ends-fol. 160 अवर गुण बापडो विनय महिमा वडो। विनयगुण भवियण चिंति भाणो। विनयथी सुरपदं विनयथी शिवपदं । हरिषेण भाई दृष्टांत जाणो । वंदि रे० ॥ ९७ ॥ श्री तप'गच्छधणी आणंदविमल गुणी । सूरसम सूरि तपतेजदीपह। श्रीविजयदानगुरुपट्टपरभाकरं । हरिविजयसूरि भुवन जीपइ । वंदिरे० ॥ ९८ ॥ तास पाटि विजयसेनसूरि राजतई । विमलहरष उवमाय केरा आणंदविजयबुधसीस महिमानिधि । गाईया गुणधरापुन्य मेरे वंदि रे॥ ९९ नयर डीस'इ रही रास रूडो रचिउ। सोधयो बुध जन कूउ कोई। नित भणई नित गुणइ नित सुणइ तेहनइ । धन विजय कहे मंगल होइ । वंदिरे वंदिरे वंदि योगीश्वरा ॥ २०० इति श्रीविनयधर्मविषये श्रीहरिषेणश्रीषेणरासके तृतीयपंड समाप्तः ॥ Then in a different hand : ग। नरोत्तमाविजयस्य प्रतिः -39 [J. L.P.]

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