Book Title: Descriptive Catalogue Of Manuscripts Vol 19
Author(s): Hiralal Rasikdas Kapadia
Publisher: Bhandarkar Oriental Research Institute

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Page 263
________________ 250 Jaina Literature and Philosophy 1843 समरीय सामणि सारदा ए सानदिसंभारो भागि पाल्यो प्रति एहनु ए कहो सुषकमारो १ तो उठी ततक्षिण भणे एहुं भाविसु अगि सेठ सुंदरसण तणो रास रचियो मनरंगि 'जंबू'दीवि 'भरह ' etc. Ends -fol. 50 'तप 'गच्छगुरु गोइमसमो ए मा (5) श्रीमुषसुंदरसूरि नामिहिसिर्व संधि संपजै ए मा० दूरीय पणासए दूरि ४८ सु. तासु तणो सेवकि रच्यो ए मा० राम(स) रूडो हृदयरंगि थाप्यो सील सोहांमणो ए मा० भाणंद उपजि अगि ४९ संवत पनर एकोतरे (१५७१ ) ए मा. जेठहिचोथहि सुध पुष्प निक्षित्र गुरु वारसू ए मा० चारित्र पोहवि प्रसिध सु. ५७ जो लगि 'मेरु' महीधरु ए मा० जा लगि सायर पूर सालसूदरसण गाइयो ए मा० जा लगि ससिने सूर ५१ जे नर सील हे निरमला ए मा नारि वाहिया मूल बे कर जोडीय कवि कहेयमा हुँ तेहना पगनी धूलि ५२ सु० सा लहि सिवसुष संपजिए मा० सील लगि नव निधि सालि सुर सा निधि करि ए मा० सयलि सहु प्रसिद्ध ५३ सीलि उछव नित करि ए मा० सा(सीलहि कोडि काडल्याण सीयल लगि कहीय किसूं ए मा०पामीय पांचमी ठाण ५४ सु. सील प्रबंध जे सांभले ए मा० नर नि नारीय वृंद धन सुदरसण रिष केवली ए मा० चतुर्विध संघ सुप्रस्तनां ५५ सुण सुदरी चतुर्विधसंघ प्रसन इति सुदरसणसेठरास समाप्त Reference - For additional details see No. 841. N. B. - For other details see No. 843. सुदर्शनाकथा (सुदरिसणाकहा) Sudarsanākatha (Sudarisanakaha) 649 1895-98 No. 843 Size -97 in. by41 in.

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