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Jaina Literature and Philosophy
पई ॥
शिषरबद्ध दस सहसप्रासाद ||
कनककलसधजनरवइनाद ॥
'गोदावरी 'नु निर्मल नीर ।
पुरु' पठाण ' बसई तसु तीर ॥ २ ॥ etc.
"
Ends — fol. 236
धर्मलाभ अविचल शर्म ॥ जइ पुण्य छांडड पापं जि कर्म ॥ देव आराहु जिणवर नाम ॥ दुष तणउ जे फेउइ ठाम ॥ ३० ॥
अवर देवऽजड पूजइ पाय । जिण पूजइ देह निर्मथाइ ॥ जिणवर बोलिउ धर्म ते करउ ।। पाय रेउ जिम इलां हरउ ॥ ३१ ॥
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गुणवंत गुरुपाय अणसरु | मुक्तिपुरी मांहे अणसरु ॥
पुरय ' पहिठाण 'यादववंश ॥ वर्णवाया वत्सराज नह हंस ॥ ३२ ॥
सकल लोक राजा रंजनी । कुलयुगकुथाउत्तइ वावनी ॥
गाहा दुरु वस्तु चउपई ॥ सुजिस्यई प्यारि बनीसइ जूभली त्रिण सह विसाल । तीणा मोहमाया जाला । सुणतां दोषदरीद्र सविटलहं ॥ भई असाइत तिह अफलां फलई ॥ ३४ ॥
इति श्रीहंसवत्सकथायां चतुर्थषंड समाप्त संवत् १६५९ वर्षे भद्रवा सूदि ९ दिने रिषि - श्री उदयचंद्र शिष्य ऋषिमनोहरलिषतं । ' नादसमा'मध्ये
Reference For extracts and additional MSS. see Jaina Gurjara Kavio (Vol. I, pp. 46-47).
हंसराज - वत्सराजचतुष्पदी ( हंसराज वत्सराज- चोपई )
No. 874
Hamsarāja-Vatsarāja-catuspadi ( Hamsarāja-Vatsaraja-copai
Size - 11 in by 44 in.
Extent - 30 folios; 14 lines to a page; 44 letters to a line :
1383
1886-92
Description Country paper thick, tough and white; Jaina Devanagari characters; big, quite legible, uniform and very good hand - writing; borders ruled in two lines in red ink; dandas and