Book Title: Descriptive Catalogue Of Manuscripts Vol 19
Author(s): Hiralal Rasikdas Kapadia
Publisher: Bhandarkar Oriental Research Institute

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Page 299
________________ 286 Jaina Literature and Philosophy पई ॥ शिषरबद्ध दस सहसप्रासाद || कनककलसधजनरवइनाद ॥ 'गोदावरी 'नु निर्मल नीर । पुरु' पठाण ' बसई तसु तीर ॥ २ ॥ etc. " Ends — fol. 236 धर्मलाभ अविचल शर्म ॥ जइ पुण्य छांडड पापं जि कर्म ॥ देव आराहु जिणवर नाम ॥ दुष तणउ जे फेउइ ठाम ॥ ३० ॥ अवर देवऽजड पूजइ पाय । जिण पूजइ देह निर्मथाइ ॥ जिणवर बोलिउ धर्म ते करउ ।। पाय रेउ जिम इलां हरउ ॥ ३१ ॥ [874 गुणवंत गुरुपाय अणसरु | मुक्तिपुरी मांहे अणसरु ॥ पुरय ' पहिठाण 'यादववंश ॥ वर्णवाया वत्सराज नह हंस ॥ ३२ ॥ सकल लोक राजा रंजनी । कुलयुगकुथाउत्तइ वावनी ॥ गाहा दुरु वस्तु चउपई ॥ सुजिस्यई प्यारि बनीसइ जूभली त्रिण सह विसाल । तीणा मोहमाया जाला । सुणतां दोषदरीद्र सविटलहं ॥ भई असाइत तिह अफलां फलई ॥ ३४ ॥ इति श्रीहंसवत्सकथायां चतुर्थषंड समाप्त संवत् १६५९ वर्षे भद्रवा सूदि ९ दिने रिषि - श्री उदयचंद्र शिष्य ऋषिमनोहरलिषतं । ' नादसमा'मध्ये Reference For extracts and additional MSS. see Jaina Gurjara Kavio (Vol. I, pp. 46-47). हंसराज - वत्सराजचतुष्पदी ( हंसराज वत्सराज- चोपई ) No. 874 Hamsarāja-Vatsarāja-catuspadi ( Hamsarāja-Vatsaraja-copai Size - 11 in by 44 in. Extent - 30 folios; 14 lines to a page; 44 letters to a line : 1383 1886-92 Description Country paper thick, tough and white; Jaina Devanagari characters; big, quite legible, uniform and very good hand - writing; borders ruled in two lines in red ink; dandas and

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