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1921 The Svetāmbara Works
187 गुरु अनुमति निज मनि उलास । एकही यो मैं प्रथक अभ्यास ।। ५०॥ पामैं नरपदमणि सुविलास । पदमणि पामैं सुष धरवास । भणतां लाभै वंछित भोग । सुणतां प्रीतम तणो संयोग ॥५१॥ बालंभ प्रीयु तणी पदमनी। जेहना वलि परदेसै धणीं । रति वंछित जे सुणसी सदा । ते पामैं पग पग संपदा ॥ ५२ ॥ दूहा। संवत मुनिनिधिरसससी ( १६९१) । विजयदसमी रविवार । चतुर चाहि रची चौपई ॥ मुनिकेशव हितकार । ५३ । वेधक जै वांचै सुणै । वंछित पुजै हाम । जिम सावलिंगासुष ललौ सुदयवत्स सुखठाम ॥ ५४ ॥ मैं रचना आर्हा ज रची । कविजन परम कृपाल । सुणिकैजिन हासी करौ करिज्यो दयादयाल ॥५५॥
इति सुदयवत्ससावलिंगाचतुष्पदी समाप्ता ॥ लिखिता ऋषिमु
कुंदेन ॥ Reference - For extracts and additional MSS. see Jaina Gurjara Kavio
(Vol. III. pt. 1, pp. 1082-1085. Op p. 1085 it is suggested that the author is Kirtivardhaua who composed this work for his pupil Kesava.
सनत्कुमारकथा
Sanatkumārakathā
1201(0) No. 792
1887-91 Extent-fol. 11a to fol. 12b. Description - Complete. For further particulars see No. 377. Author-Not known. Subject - a narration in Sanskrit prose about Parvatithivicăra Sanat
kumāra, a cakravartin. It points out the importance of penance.
For comparison see the following works :सनत्कुमारचरित्र by जिनपाल
हरिभद्रसूरि श्रीचन्द्रसूरि (V. S. 1278)