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इसलिये जावजीवाए जीवन पर्यन्त तिविहं कृत, कारित, अनुमोदित रूप मैथुन सेवन को मणेणं मन वायाए वचन कारणं काया रुप तिविहेणं तीन योग से न करेमि नहीं करूं न कारवेमि नहीं कराऊं करतं करते हुए अन्नं पि दूसरों को भी न समणुजाणामि अच्छा नहीं समझू भंते हे ज्ञानसिन्धो! तस्स भूतकाल में किये गये मैथुन सेवन की पडिक्कमामि प्रतिक्रमण रूप आलोयणा करूं निंदामि आत्म-साक्षी से निंदा करूं गरिहामि गुरु. साक्षी से गर्दा करूं, अप्पणं मैथुनसेवी आत्मा का वोसिरामि त्याग करूं. भंते! हे प्रभो! चउत्थे चौथे महव्वए महाव्रत में सव्वाओ समस्त मेहुणाओ मैथुन सेवन से वेरमणं अलग होने को उवडिओमि उपस्थित हुआ हूं। पंचम महाव्रत की प्रतिज्ञा
अहावरे पंचमे भंते! महव्वए परिग्गहाओ वेरमणं सव्वं भंते! परिग्गहं पच्चक्खामि। से अप्पं वा बहुं वा अणुं वा थूलं वा चित्तमंतं वा अचित्तमंतं वा नेव स परिग्गहं परिगिणिहज्जा नेवऽन्नेहिं परिग्गहं परिगिणहावेजा परिग्गहं परिगिण्हते वि अन्ने न समणुजाणेजा। जावजीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करतं पि अन्नं न समणुजाणामि तस्स भंते! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि पंचमे भंते! महव्वए उवट्टिओमि सव्वाओ परिगाहाओ वेरमणं।
शब्दार्थ-अह इसके बाद भंते हे गुरू! अवरे आगे के पंचमें पांचवे महव्वए महाव्रत में परिग्गहाओ नवविध परिग्रह से वेरमणं अलग होना जिनेश्वरों ने फरमाया है, अतएव भंते! हे कृपासागर! सव्वं समस्त परिग्गहं परिग्रह का पच्चक्खामि मैं प्रत्याख्यान करता हूं से वह अप्पं वा अल्पमूल्य एरंड-काष्ठ आदि बहुं वा बहुमूल्य रत्न आदि अणुं वा आकार से छोटे हीरा आदि थूलं वा आकार से बड़े हाथी आदि चित्तमंतं वा सजीव बालक बालिका आदि अचित्तमंतंवा निर्जीव वस्त्र आभरण आदि परिग्गहं परिग्रह सयं खुद परिगिहिजा ग्रहण करे नेव नहीं अन्नेहिं दुसरों के पास परिग्गहं परिग्रह परिगिण्हाविजा ग्रहण करावें नेव नहीं परिग्गहं परिग्रह परिगिण्हते ग्रहण करते हुए अन्ने वि दूसरों को भी न समणुजाणेज्जा अच्छा समझे नहीं, ऐसा जिनेश्वरों ने कहा। इसलिये जावजीवाए जीवन पर्यंत तिविहं कृत कारित अनुमोदित रूप त्रिविध परिग्रह का ग्रहण मणेणं मन वायाए वचन कारणं काया रुप तिविहेणं तीन योग से न करेमि नहीं करूं न कारवेमि कराऊं नहीं करतं करते हुए अन्नं पि दूसरे को भी न समणुजाणामि अच्छा समझू नहीं भंते ! हे प्रभो! तस्स भूतकाल में ग्रहण किये गये परिग्रह की पडिकमामि प्रतिक्रमण रुप आलोयणा करूं निंदामि आत्म-साक्षी से निंदा करूं गरिहामि गुरु साक्षी से गर्दा करूं अप्पाणं! परिग्रहग्राही आत्मा का वोसिरामि त्याग करूं भंते! हे गुरो! पंचमे पांचवें महव्वए महाव्रत में सव्वाओ समस्त परिग्गहाओ परिग्रह से वेरमणं अलग होने को उवढिओमि उपस्थित हुआ हूं।
१. 'वा' शब्द से एरंडकाष्ठ, रत्न, सचित्त, अचित्त आदि के अलग - अलग तज्जातीय भेद भी ग्रहण करना चाहिये।
श्री दशवैकालिक सूत्रम् / २६